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पनुमोध्यायः॥ कन्या-का विवाह पिता न करे तो जितनी बार रजस्वला हो उतनी गर्भ हत्याओं का पाप कन्या के पिता को होगा। प्रतएव ११ वर्ष से पूर्व कन्या का विवाह करदे । पराशर तथा स. म्वत स्मृति के प्रमाण हम पहिले लिख चके हैं। सारांश सभी ग्रन्थों का यह है कि वर्ष से १२ वर्ष पय्यंत विवाह कर देना चाहिये १० वर्ष पर्यन्त उत्तम काल ११ । १२ में गौण काल मानागया है। कदाचित् ठीक २ शुद्धि वा मुहूर्त न मिले तो १२ व वर्ष पूजा दान करके शकुन शान्तिपाठ ब्राह्मणों से कराकर अवश्य विवाह कर देवै॥ द्वादशैकादशेवर्षे यस्याःशुद्धिर्नजायते। पूजाभिःशकुनैर्वापि तस्यालगंप्रदापयेत्॥शीयो० - पाठ वर्ष से पूर्व ६।७ वर्ष की बालिकाओं का जो वि. वाह करते हैं वह अवश्य शास्त्र विरुद्ध कुरीति है। इस कु. रोति को हटाना सभी देश हितैषी विद्वानों को योग्य है। ज्योतिषशास्त्र में लिखा है कि ८ वर्ष से पूर्व विवाह कर देने से कन्या के विधवा होने का फल है। इस प्रकार का पालविवाह अवश्य हानिकारक है ॥
(ज्यो० १० पृ० ४१ पं०५)-सम् ११५० ई० तक यवन ज्योतिष की चढ़नी रही, इस बीच में सामुद्रिक प्रश्न योग इत्यादि बहुत मी विद्यायें चलीं जिन्हों ने फलित को और भी सहारा दिया।
(समीक्षा)-पापका लेख वेसबूत महामिश्या है । सामु. द्रिक की प्राचीनता महाभाष्य के पतिलीपाणिरेखा,से सिद्ध हो चुकी है। षटपंचाशिका भी मापने नहीं देखी जो वराह जी के पुत्र ने प्रश्न की पुस्तक विक्रम के समय बनायी थी। सन् १९५० ई० से प्रश्न विद्या का चलाना जो आपने लिखा
सो पापकी कपोल कल्पना मिश्या सिद्धहुई । जोशी जी! वाल्मीकि मुनिने रामायण,भगवान रामचन्द्र जी के जन्म से पहिले
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