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६२ ज्योतिषचमत्कार समीक्षायाः ॥ .. भाषा-ब्राह्म, दैव, पार्ष, प्राजापत्य, प्रासुर, गान्धर्व, राक्षम, पैशाच, ये सब ८ प्रकार के विवाह होते हैं। उन में पैशाच अधम है। ब्राह्म, देव, पार्ष, प्राजापत्य इन को मन जी ने उत्तम कहा है। सो इन्हीं में विधि मिलाने की गति प्र. धनित है । भगवान् रामचन्द्र तथा सीता जी इत्यादियों की भी धनषभअमरूप एक प्रकार की विधि मिलाई गयी थी। इसी कारण और राजा लोग धनुष को न तोड़ सके ।
भूप सहसदश एकहि वारा। लगे उठावन टरहि न दारा॥ यदि कहो कि ज्योतिष के अनुकूल विधि क्यों नहीं मिलाई गयी? सो ज्योतिष के प्राचार्य नारद जी प्रादि ने बचपन ही में जानकी जी की विधि रामचन्द्र जी के साथ मिला करके कह दिया था कि रामचन्द्र जी के साथ सीता जी का विवाह होगा ॥ यथा
नारद वचन सदा शुचि सांचा।
सो वर मिलहि जाहि मन रांचा ॥ इस गौरी जी के प्राशीर्वाद से नारद जी का विधि मि. लाना स्पष्ट प्रगट है। पूर्वकाल में ज्योतिषविद्या का इतना प्रचार था कि ऋषि मुनि अनेकप्रकार ( हस्त रेखा कुण्डली इत्यादि ) से ज्योतिष का ठीक २ विचार कर लेते थे। जैसे नारद जी ने हिमालय के पास जाकर पार्वती जी के विषय में कहा था कि महादेव जी के माथ इसका विवाह होगा॥ यथा
सर्वलक्षण सम्पन्न कुमारी, होइहि सन्तत पियहिं पियारी। सदा अचल इहिकर अहिवाता,
इहिते यश पैहहिं पितुमाता । इत्यादि दो-योगी जटिल अकामतनु,नग्गअमंगल भेष ।
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