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५२ ज्योतिषचमत्कार समीक्षायाः ॥ __ जेहिके जेहि पर सत्य सनेहू-सो तेहि मिलहिं न कछु सन्देहू। ___फलित के ग्रन्थों में ऋषि मुनि तथा अन्य प्राचार्यों के नाम आप को दृष्टि में नहीं पड़ने, इस का क्या कारण है ? । ___ रैम्यात्रि हारोत बसिष्ठ पराशराद्यैः,इत्यादि ज्यो० अ० १।१ विलोक्य, गर्मादिमुनिग्रणीतं, वराहलल्लादिकृतं च शास्त्रम् ॥ __हमारे ऋषि महर्षियों को लाड यमन को आप सूख ले पाते हैं । ४० ३१ पं०१२ में प्राप लिखते हैं कि हिन्दुओं के फलित के गुरु यही यवन अर्थात् यूगानी थे॥
जोशी जी! हिन्दुओं के फलित के गुरु तो १८ ऋषि थे। पिता. मह व्यास, अभिष्ठ, पराशर, नारद, गगं, मरीचि, ननु, अङ्गिा लोमश. पोलिश, गुरु शौनक इत्यादि ज्योतिषशास्त्र इन महर्षियों के द्वारा प्रवृत्त हुआ, यवन अथवा स्वामी सघंट के गुरु होंगे हिन्दुनों के नहीं ॥
(ज्यो. च० पृ० ३१ ) अनफा सुनका इकबाल इत्थशान इस प्रकार यवनों के शब्द फलित में मिलते हैं। संस्कृत के अन्य ग्रन्थों में नहीं ॥
(समीक्षा)-जोशी जी ! ताजिक नीलक गठी के अतिरिक्त फलित के किसी अन्य में इस प्रकार के शब्द नहीं हैं। नील कराठी में इस प्रकार के शब्द होने का कारण हम पहिले लिख चुके हैं। संहिता और मुहर्तग्रन्थ जातक भादि के ग्रन्थों में एक शब्द क्या एक साक्षर भी इस प्रकार का आप नहीं दि. खा सकते । षोडशयोगों के अतिरिक्त नीलकगठी में भी ऐसे शब्द कम मिलेंग। ऐसी दशा में फलित के सभी ग्रन्थों पर टूट पहना प्रापको योग्य नहीं । पाठकगण ! एक भलोपनिषद पुस्तम है जिस्में फारसी अरवी के शब्द भी आते हैं-यपा
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