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ज्योतिषचमत्कार समीक्षायाः ॥ ब्रमाह के मध्यदेश में व्योम के बीच यह भगोल स्थिरता से स्थित है। पाठकगण ! जोशी जी की सभी बातों का वर्ण होता जाता है। नास्तिकतारुपी अजीर्ण रोगियों को यह चर्ण नाभदायक होगा ॥
( ज्यो० प. पु. ३४)-जब यनामी लोग कावुल छोड़कर चले गये तो पारमदेश के लोग इन के चेले हो गये । मेरे पाप्त एक पारमोपिनास पुस्तक है । जिम में ऐसे श्लोक -
यदामर्जखानेभवेत् आफतापोजलोलैः गनीखूबरूहम्जवाचः।मालखानेमुस्तरी इत्यादि
(समीक्षा)-यूनानी और पारस के लोगों ने नहीं, किन्तु अकबर बादशाह के समय नवाबखानखाना ने जातकों का तर्ज ना करके ये पद्य बनाये हैं। पुस्तक का नाम खटकौतुक है मुम्बई के वे कटेश्वर प्रेस में छप भी गयी है।
(ज्यं० १० पृ. ३४ पं० १० )-भडली के उत्पन्न होने से उन्नति हुई इन्हों ने शकुनाव की लिखी है । शुक्रवार को वादली-रहै शनीचर छाय। कवि कहै सुन भाली विम वर्षे नहिं जाय ॥ इत्यादि__(समीक्षा)-पाठक गण ! समय की विचित्र गति है। किसी समय में ज्योतिष विज्ञान की इतनी उन्नति थी कि भडनी जैसे अनपढ़ पुरुष भी भाषा में शकुन की पुस्तक लिख गये हैं। पर माण यह समय पाया है कि एक ग्रेजुएट ज्योतिषी जी ने सगान की पुस्तक बना डाली ॥
(ज्यो. च० पृ० ३६ पं०८)-फलित वाले कहते हैं कि मुसलमानों ने सब ग्रन्थ जला डाले यह सब झठ है। जब कि वेद पुराण और निकम्मी पुस्तकें तक वच गयीं तो फलित को धे क्यों जलाते॥ . (समीक्षा)-जोशी जो फलित वाले हो, नहीं किन्तु इ. तिहास तथा भारतवर्ष के सभी पढ़े लिखे लोग कहते हैं कि
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