________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ज्योतिषचमत्कार समीक्षायाः ॥ भी अपना शिष्य बना डाला, जोशी जी महाराज | यदि भा. स्कराचार्य जी अपवा आर्यभट्टादि फलित को न मानते तो कोई पुस्तक फलित के खराहन की अवश्य बना जाते, क्या ये भाप के बराबर योग्यता वा माहात्म्य नहीं रखते थे। प्रार्यमह तथा भास्कराचार्य सभी प्राचार्य फलित को बराबर मा. नते चले आये हैं। शिरोमणिसिद्धान्त का भी कहीं माममात्र भाप ने सुन लिया है। पुस्तक के दर्शन नहीं किये, शिरोमणि से भास्कराचार्य जी का फलित को मानना स्पष्ट प्रकट है। यदि भाप उक्तसिद्धान्त पढ़े होते तो भास्कराचार्य जी महाराज को क्यों नास्तिकता का कलंक लगाते देखिये सिद्वान्तशिरोमणि___ जानन्जातकसंहिताः सगणितस्कन्धकदेशाअपि ।ज्यातिःशास्त्रविचारचारचतुरः प्रश्नेच किञ्जित्करः ॥ यःसिद्धान्तमनन्तयुक्तिविततं नो वेत्तिभित्तोयथा। राजाचित्रमयोऽथवासुघटितः काष्ठस्यकण्ठीरवः ॥ ७ ॥ गणिताध्याय० श्लो०७
अर्थात् सिद्धान्त विद्या गणित न जामता हो केवल फलित पढ़ा हो, ऐसा नक्षत्र सूची राजसभा में काष्ठ के सिंह प्र. पवा चित्रवत शोभा नहीं पाता है। गणित सहित जातकसंहिता शकन प्रमविद्या को जान कर विचारने वाला चतुर ज्योतिषी राजसभा में पूजित होता है।
पाठक ! जातकसंहिता प्रश्नविद्या को भास्कराचार्य जी का मानना साफ २ प्रगट हो गया। इसीप्रकार बापदेव शाश्री जी भी फलित को मानते थे। यदि न मानते तो खपान लिख जाते । और अपने पञ्चांग में संवत्सरादि के फल न लि. खतेो रहाद्विवेदी जी का किरमा,सो अनेक जन्मपन विधिमिलाने में द्विवेदी जी के साम्य किये हुए हमारे यहां ( श्रीपिता जी के
For Private And Personal Use Only