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द्विनी यो रियः ॥ जेहि जब दिगाम होइ खगेशा।
सो कह पश्चिन उगेउ दिनेशा ॥ ( ज्या च० प. १९ पं १४ )-कोई ६० वर्ष का बढ़ा ज्यो. सिषी की गरम मूठ करे तो लड़की उनी के गिर मार दिई जाय इत्यादि-( समीक्षा) यह कथन भी आप का निर्मल है। कोई भी पशिडल रिश्वत लकर बड़ों से विधि नहीं मिलावे. गा। केवल ६० वर्ष के वढ़ों को लड़की ऐसे लोग व्याहते हैं जो लोग रुपये खा कर कन्या को वचने वाले होते हैं ! हम भा. शा करते हैं कि हमारे जोशी जी लोगों को बुरा समझते हैं। आप तो सिर्फ ज्योतिषी पण्डितों से चिढ़े। जिन विचारों ने परिश्रम से अनेक ग्रन्थ गणितादि के बनाये । तथा अनेक यत्र भूगोल खगोल तूरीय इत्यादि रचे। देश देशान्तरों में भारतवर्ष की कीर्ति फलाई । अब भी पञ्चांग गणना इत्यादि परिश्रम केवल लोकोपकार के लिये ही उयोतिषी लोग करते हैं । ६।६ महीने बड़ा परिश्रम करके पैसे का भी लाभ नहीं होता। हाय ऐसे निर्दोष विद्वानों को उन्हीं के वंश में जन्म लेकर मापन कलक लगाया ॥
पाठक महाशय ! फलित और गणित वेद भगवान के दो नेत्र हैं। इस शास्त्र को जो निन्दा कर उसे समझो वेद भगवान के नेत्र फोड़ने का उद्योग करता है । जिस मनुष्य को भजीर्म हो जाता है उसे भन्न जहर मालम पड़ता है। इसी प्रकार जिसे वायुकोप ( वायु ) की बीमारी हो जाती है वह सभी अपने इष्टमित्र कुटुम्ब के लोगों को मारने दौड़ता है। उसे वे शत्ररूप दीखते हैं इसी प्रकार जिन लोगों को प्रज्ञानतारूप अजीर्ण “ अथवा वायरोग हो जाता है " उन को ज्योतिष धर्मशाल भादि के सभी विषय विषरूप जान पड़ते हैं। और पगिहत, शास्त्री, ज्योतिषी, ये शत्रु के तुल्य विदित होने लगते हैं।हा ! हा ! ये लोग न होते तो खेच्छाचार होता
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