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४२ ज्योतिषचमत्कार समीक्षायाः ॥
(समीक्षा)-आप ने सहज्जातक नहीं देखा घराह जी ने पिसेम विष्णगुप्त देव स्वामी मणि त्य शक्ति जीवशर्मा मत्या. चार्य इत्यादि अनेक प्राचार्यों के नाम लिखे हैं। देखिये सह. ज्नातक ७ तथा और १० ___ आयुर्दायविष्णुगुप्त तिचैव देवस्वामीसिद्ध सेनश्चचक्र । इति स्वमतेन किलाहजीवशा " तथा सत्योक्ते ग्रहमिष्टम् ॥ ___ और “ मयययनमणित्यशक्तिपूर्व ,, इत्यादि लिया। ऋषि मुनियों के बनाये और भो भनेक ग्रन्य थे। गर्ग, पराशर, नारद, संहिता जेमिनिमत्र, प्रभृति उन्हीं के आधार पर यह ग्रम्प बना साक लिखा है। मुनि मतामि अवलोक्य हमीप्रकार बाराही संहिता में भी पराशर गर्ग देवल मादि ऋषियों के नाम लिखे हैं शुक, मणिस्थ, बादरायणा, जैमिनि, सभी भाचार्य,
जी से पहिले हो चुके थे पीछे नहीं ॥
( ज्यो० १० पृ० २८ )-नीलकण्ठ जी ने फारसी में ताजक बनाया और षट्पञ्चाशिका, पारमोबिस्लाम, यवमनातक, समलशाख, केरल सारावली, और केशवी फछली पुस्तक लिखी गयी ।
(समीक्षा)-देखिये इन पुस्तकों का ठीक २ पता हम लिखते हैं षट्पञ्चाशिका वराहमिहिर जी के पुत्र ने बनायी, पारसीविलास कुछ नहीं जातकों के कुछ लोक नयाच खानखाना ने फारसी में बनाये, भकवर के समय की बात है कि नसे आज कल अंगरेजी में कई ज्योतिष की पुस्तकों का अनुबाद छप गया है, उसी प्रकार ये भी हैं।
उनीप्रकार यवन जातक हमारे ऋषि मुनि प्राचार्यों का मत लेकर यवनाचार्य ने बनाया, नीलकराठी ताजिक ग्रन्थ है। यह विद्या भी यवनों के राज्य समय में मील कराठ प्राचार्य ने संस्कृत में बनाकर अपने यहां लौटाई । क्योंकि यवन लोगों के अपनी भाषा में ये ग्रन्थ वनाये शोर तानिक नाम र क्वा ।
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