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द्वितीयोऽध्यायः ॥ भी (पतिनो पाणि रेखा) आदि न हों तथा क्षयी पेत्तिक मृगी श्रादि अमाध्य रोग वाली न हो ऐपी कन्या से विवाह करै॥१८॥ कुनीन सुशील शुभ लक्षणों वाला वेदशास्त्रों का विद्वान् निरोग यं वर के शुभ लक्षणा जानो ॥ १९ ॥
पाठनगगा ! इम ऊपर के लेख से शकुन प्रश्नादि तथा सामुट्रिक सभी विषय मिटु हो चुके हैं। चिट्ठी पुर्जी भी गिद्ध होगई जोशी जी तो आपस्तम्ब को भी किमी यवन या ईसाई का बनाया कह सकते हैं पर हमारे आस्तिक पाठक अवश्य ही इस लेख से प्रसन्न होंगे तथा लाभ उठावेंगे ॥
(ज्यो० च पृ० १७)-मथरा के चौबे लोगों ने ज्योतिष को यमुना जी में डुबो दिया, न डवाते तो वंश का निवेश होता, मैथिल लोगों ने भी ज्योतिष को अलग कर दिया ज्योतिष देख कर चलाते तो कभी निवेश हो जाते॥
(ममीक्षा) मथरा के चौवे मेथिल ब्राह्मणा मभी लोग ज्योतिष को मानते हैं अनेक चौबे स्वयं बड़े २ ज्योतिषी हैं। सैकड़ों चौवे मैथिल ब्राह्मणों के जन्मपत्र मैंने स्वयं देखे हैं। पर प्राप को बेप्रमाण वात लिखना योग्य न था। अब रहा वंश का निवेश होना, मो जोशी जी जरा शोनिये घर के बड़े बड़े प्राप के यहां भी अव तक ज्योतिष मानते हैं। पर ज्योतिष मानते २ प्राज तक वंश वरावर क्यों चला भाता है ? । हमारे शास्त्र में तो स्वधर्म में अरुचि और अनाभार तथा नास्तिकता करने से वंश का नाश होना लिखा है। ज्योतिष मानने से निवंश होते तो जोशी लोग कभी के निवंश हो गये होते ॥
(ज्यो० च० पृ० १७ )-शरहीन खत्रियों में मौसेरे भाई बहिनों का विवाह हो जाता है चलो निबंश होने से यही प्र. च्छा हुवा ??-( ममीक्षा)-यदि प्रापकी वात मत्य है तो शर. होन खत्री अच्छा काम नहीं करते शिव २ हरे २ भाई बहिन से वंश चलाने की अपेक्षा निबंश होना हजार दर्जे अच्छा है।
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