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द्वितीयोऽध्यायः ॥
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व कुरूपा कन्या के साथ विवाह करने में महादोष लिखा है और ओहिन्दू लोग बिना कन्या को देखे भाले जन्मकुण्डली का ( चिह्न) तक नहीं मांगते प्रर विवाह होने से पर्व ज्योतिपी पति से जन्मपत्री दिखा कर गुण भाव्यादि का वि चार करा होते हैं । फिर उन हिन्दुओं की खान कहते हैं कि आंख उठाने का अवसर नहीं मिलता, धन्य है । अब यहां से गृह्यसूत्रों के आधार पर कन्या वर की परीक्षा का कुछ विचार जो कि विवाह के साथ विवाद आता है लिखते हैं। अपने शास्त्रों से विदित होता है। देखिये प्रापस्तम्ब गृह्यसूत्र में लिखा है कि पन्द्रह १५ प्रकार की कन्याओं से विवाह न करे । ( आपस्तं ० ३ खण्ड सू० १९) दत्तां गुप्तां द्योतामृषभां शरभां विनतां विकटां मुण्ढां-माण्डू पिकां साकारिकां रातां पाठी मित्रां स्वनुजां वर्षकारों वर्जयेत् ॥ ११ ॥
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अर्थात् अन्यको दान दिई हुयी अन्य के साथ बिवाहित, छिपी हुई जिनको पितादि प्रशुभ लक्षकों के कारण गुप्त रखते हों, द्योतां मेंठी विषमदृष्टि वाली ऋषभ नाम ऋषभ के स्वभाव बाली, शरभा प्रतिसुन्दरी ( क्यों कि ऐनी स्त्री को जार लोग विशेष चाहते हैं ) व्रत एवं नीति में भी कहा है ( भार्या रूपवती शत्रुः ) निला टेढ़े शरीर वाली, विफ टां फेजी जाघों वाली मुदा के मुण्डित बाली, मण्डूषिका कठोर - ear aौनी, कारिका अन्यकुल में पैदा और अन्य कुल पाली हुई, राता नाम प्रतिकामिनी ( याने बाल्यावस्था में ही चपल स्वभाव वाली ) रविशोल, पाली पशु यों को पालने वाली, मित्रा बहुतों से मिश्रता करने वाली, स्वनुजा - जिसकी छोटी बहिन बहुत दर्शनीय हो - वर्षकारी नियत समय गभनें कम रह कर पैदा हुई हो इन पन्द्रह मकारी कन्या श्रों से विवाह न करे ॥
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