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ज्योतिषचमत्कार समीक्षायाः ॥ सिद्धान्त, पौलस्त्यसिद्धान्त, पैतामहसिद्धान्त इत्यादि पुसतक इसी समय के बने हुए हैं।
(समीक्षा)-शाह या! तो गणित विद्या भी यनानियों के समय से ही चली फाहिये, द्वापर त्रेता में पञ्चांग गणना अधया अन्य गणित कैसे होता था ? किस ग्रन्थ से, जोशी जी ! मापने सूप पता लगाया, धन्य हो ! मेरी राय से तो नाप एक धेर की उत्पत्ति की भो पुस्तक लिख हालिये, पाप के लिये सहज है। क्योंकि लिख दिया कि वेदभी यनानियों में बनाये बस ॥
पाठक महाशय ! ध्यान दे कि सूर्यमिद्धान्त सत्ययुग में धना है * मय नामा दैत्य उभ मामय राज्य करता था।र्याद हमारे जोशी जी सर्यसिद्धान्त का अवलोकन करते तो यमा. मियों के समय का बना कदानि न लिखते केवल नाम मात्र मिद्धान्तों का सुन लिया होगा । देखिये--
अल्पावशिष्टेतु कृते मयो नाम महासुरः । रहस्यं परमं पुण्यं जिझोसुर्ज्ञानमुत्तमम् ॥२॥ वेदाङ्गमयमखिलं ज्योतिषों गतिकारणम् । आराधयन्विवस्वन्तंतपस्तेपेसुदुश्वरम्इसूर्यसि०अ०१
भाषार्थ-मत्ययुग का कुछेक अंश शष रहते हुए महा असुर मय ने परम पवित्र रहस्य वेदाङ्गों में श्रेष्ठ समस्त ज्योतिषों के कारण रूप उत्तम ज्ञान को प्राप्त करने के लिये जिज्ञासु होकर सूर्य भगवान की आराधना रूप प्रति कठोर तप किया, सूर्य भगवान के प्रसन्न होने से यह ज्ञान उभे प्राप्त हुआ, वही संवाद सूर्य सिद्धान्त है । और शिरोमणि सिद्धान्त में लिखा
है कि ब्रह्मा जी ने शिशुमार चक्र की रचना किई, उसी समय ज्योतिष शास्त्र की रक्षमा हुई, वेद के अङ्क रचे नहीं ____ * नोट-अष्टाविंशाधगादस्माद्यातमेतत्कृतं युगम् ॥ अर्थात यह २८ वां सत्ययुग व्यतीत हुआ ( स० सि० )
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