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चतुर्थोऽध्यायः ॥ ( समीक्षा)-चीन तथा कनडिया के इतिहास में नहीं किन्तु फलित का नाम इतिहास पुरागा धर्मशाख और ह. मारे वेद ब्राह्मण उपवेदादि में भगा हुआ है। जिसे हम प्रमाण देकर पुष्ट भौर सिद्ध कर चुके हैं। माप भी भूमिका के पृ.१ में गर्ग, पराशर,भृगु, नादि मुनियों का नाम लेकर फलित को मान चुके हैं। पर मित्रवर ! भापके लगढ़ का नाम कहीं नहीं देखा, ये म. हात्मा कौन थे आप ही जानते होंगे ॥
( ज्यो० १० पृ० २७ । २८ )-वराहमिहिर सन् ५०६ ई० में मानन्ति झा देश के कपित्थ ग्राम में उत्पन्न हुए। आदित्यदास ब्रमण का लड़का था यनानियों का यश सुन कर पश्चिम को गया, सराहमिहिर ने काबल में जाकर फदित सीखा और अ. वन्ति का में भाकर शहज्जातक घजातक रचे ।।
(समीक्षा)- महाशय जी ! आपकी पुस्तक के जिस पृष्ठ को देखते हैं उसी पृष्ठ में मिला लेख तथा वेप्रमाण बातें देखने में माली हैं। जोगी जी ! वराहमिहिर जी सन् ५०६ ई० में नहीं, किन्तु ईसा से ५६ वर्ष पहिले हो चुके थे। हमारे डिप्टी साहब नं कहीं यह न लिख डाला कि ईसामसीह से इतमे वर्ष वाद मष्टि हुई, तपा इसने वर्ष बाद बेद बने इत्यादि इतनी कृपा को क्योंकि जितनी मारी बातें आपने लिखी हैं सभी में च. मत्कार देखा । पाठक महाशयो ! वराहमिहिर जी महाराणा विक्रम के समय हुए घ, हारण कि कालिदास जी अपने ज्योतिर्विदाभरगा ग्रभ्य में लिखते हैं कि विक्रम की पगित सभा के मौरन थे उनमें से वराहमिहिर जो गणक रत्र कहलाते थे।
उक्तज-धन्वन्तरिक्षपणकाऽमरसिंहशंकु वेतालभघटखर्परकालिदासाः । ख्यातोवराहमिहिरोनपतेःसभायां रत्नानिवैवररुचिर्नवविक्रमस्य॥
भाषा-धन्वन्तरि, क्षपणाक, अमरसिंह, शंकु, वेतालभह, घटसर्पर, कालिदास, वराहमिहिर, वररुचि, ये राजा विक्रम की सभा में मौ रन थे॥
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