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चत पोध्यायः॥ सो भास्कराचार्य जी लिख जाते कि यूनानियों के समय से सिद्धान्त विद्या चली है । देखिये सिद्धान्त शिरोमणि कालमा. नाध्याय कोक । १० । १२॥ "वेदास्तावद्यज्ञकर्मप्रवृत्ता यज्ञाःप्रोक्तास्तेतु का. लाश्रयेण । शास्त्रादस्मात् कालबोधोयतः स्याद्रे. दाङ्गत्वं ज्योतिषस्योक्तमस्मात् ॥ शब्दशास्त्रं मुखं ज्योतिषं चक्षुषी नात्र मुक्तं निरुक्तं च कल्पः करौया तु शिक्षाऽस्य वेदस्य सा नासिका पादपद्मद्वयं छन्द आद्यर्बुधैः ॥१०॥ सृष्ट्वाभचक्र कम. लोवेन ग्रहै: सहैतद्गणादिसंस्थैः । इत्यादि ॥
भावार्थ-वेदोक्त यज्ञों के काल निर्णय के निमित यह वेदा. न उपोतिष बना । शब्द शास्त्र मुख, ज्योतिष नेत्र, निरुक्त कर्ण तथा हल्प हाथ, शिक्षा नासिका और छन्दःशास्त्र पाद ये सब वेद के अंग ब्रह्मा जी ने कहे हैं।
रागिमक्षत्र चक्र ] शिशुमार भी रचना किई। पाठकगण ! सिद्धान्त ग्रन्थों में कहीं २ फलित का भी वसन है। पैतामह मिद्वान्त भी पूर्वकाल में ब्रह्मा जी ने बनाया था हम को हम ब्रह्मसिद्धान्त से सिद्ध करते हैं। उक्तञ्च ॥ ब्रह्मोक्तंग्रहगणितं महदाकालेन यदखिलीभूतम्।
अभिधीयतेस्फुटतत् जिष्णुसुतब्रह्मगुप्तेन ॥ ____ भाषा-ब्रह्मा जी की बनाई हुई उक्त ग्रहगणाना प्राचीन होने से निकम्मी हो गई । इस कारमा जिष्णु के पुत्र ब्रह्मगुप्त ने स्फट (चालन ) करके ब्रह्म सिद्धान्त प्रथक घमाया।हमी क्रमसे अन्य वसिष्ठसिद्धान्त पौलस्त्यनिद्धान्त भौममिद्धान्त सभी प्राचीन काल के ऋषिमुनियों के समय में बने हैं।
(ज्यो० ० पृ०२७) पीछे से आर्यभह ने प्रार्यसिद्धान्त वराह ने पञ्चभिद्धान्तिका और ब्रह्मणिद्धान्त रचे । ब्रह्मगुप्त ने
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