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चतोऽध्यायः ॥ भाषा-श्रीकाम, तथा शान्तिकाम, दृष्टि, आयु, अथवा पुष्टिकार्य, के अर्थ और शत्र के जपर अभिचार करने के निमित, ग्रहों का या ( ग्रहयाग ) करे । सूर्य सोम भौम वध गुरू भृगु शनि राहु केतु ये नव ग्रहों के नाम हैं। सूर्य सिद्धान्त के गंलाध्याय में भी स्पष्ट है ॥ सम्पूज्यभास्करंभक्तया ग्रहान् भान्यथ गुह्यकान।।
सूर्य तथा अन्य ग्रहों की पूजा करै नक्षत्र तथा गुह्यकों की पूजा करें। . पाठक महाशय ! जैसे वेद,ग्रामस,धर्मशास्त्र, प्रायुर्वेद, रा. मायणादि के शत प्रमाणों मे फलित की सत्यता और ग्रहों का सुख दुःख देमा, जग को शान्ति साफ २ प्रकट हुई। इसी प्र. कार महाभारत तथा अन्य पुराणों में ठसाठस यह विषय भरा हुआ है।२। ४ महीं किन्तु सैकड़ों प्रमागा हम दे सक्ते हैं, ग्रन्थवृद्धि के भय से अधिक नहीं लिखे। हमारे जोशी जी ने लिखा था कि पुराने मन्धों में कहीं फलित का वर्णन नहीं, सोनम का कथन कपोलकल्पित भिद्ध हुमा । माप ने लिखा था कि पीछ से २७ नक्षत्रों में किसी को शुभ किसी को प्रशुभ मानने लगे, मो वात भी प्रापकी निर्मल होकर कट गयो। श्राप हरिभक्त हैं अवश्य आपने देखा होगा कि श्रीमद्भागवत में भी लिखा है कि जिस समय भगवान श्यामसुन्दर का जन्म हुमा घा ग्रह नक्षत्र उस समय शुभ पड़े हुए थे भशुभ नहीं । अथसर्वगुणोपेतः कालःपरमशोभनः । या वाजनिजन्मः शान्तसंग्रहतारके ॥ भा० स्कं० १० अ०३।२ ___ यहां तक तो डिप्टी साइव फलित के ऊपर ही कृपा किये थे। पर यहां से आगे गणित की भी जड़ खोदने बैठे हैं।
(ज्यो० च० पृ० २६ पं०८)-यूनानियों ने गणित ज्योतिप की बड़ी उन्नति किई, सूर्यसिद्धान्त अभिष्ठसिद्धान्त, रोमक
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