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ज्योतिषचमत्कार समीक्षाय ॥ ___ भाषार्थ-चैत्र शुक्ल नवमी तिथि तथा पुनर्वसु नक्षत्र में भगवान रामजी का जन्म हुआ पांधग्रह उच्च के धिमा प्रस्त पड़े हुए थे। कर्क लग्न था बृहस्पति तथा चन्द्रमा लय में पड़े हुए थे। ऐसे समयमें कौशल्याने रामचन्द्र जी को उत्पन्न किया ॥मन्यञ्च,
पुष्येजातस्तुभरतो मीनलग्नेप्रसन्नधीः । सार्पजातस्तुसौमित्रिः कुलीरेऽभ्युदितेरवौइत्यादि
जोशी जी ने तो अंगरेजी का कोई तर्जुमा रामायण का पढ़ा होगा। यदि पूरा सर्जुमा भी देखा होता तो रामायण में केवल राशियों का नाम है ऐमा न लिखते । अब वेद और ब्राह्मणग्रन्थों से भी ग्रहशान्ति आदि का वर्णन किया जाता है।
(अथर्व० कां० १९ । ६।७)-शनोमित्रःशं वरुणःशंविवस्यांग्छमन्तकः।उत्पाताःपार्थिवान्त. रिक्षाः शन्नोदिविचराग्रहाः॥अथर्व का० १९६७ नक्षत्रमुल्काभिहतंशमस्तुनः ॥ १८ ॥ ॥॥
शन्नोग्रहाश्चान्द्रमसाः शमादित्याश्चराहुणा । शन्नोमृत्युधूमकेतुः शंरुद्रास्तिग्मतेजसः ॥
११॥ ___ आरेवतीचाश्वयुजौभगंमआमेरयिंभरण्य
आवहन्तु । १६ । ७।५। । ___अष्टाविंशानिशिवानि शग्मानिसहयोगंभजन्तु मे । योगंप्रपद्येक्षेमंच क्षेमंप्रपद्येयोगंच । नमोहोरात्राभ्यामस्तु । १६ । ८।२ ___ स्वस्तमितंमेसुप्रातः सुसायंसुदिवंसुमृगंसुशकुनं मे अस्तु ॥ ३॥ अथर्ववेदे। १९ ॥ ६ । ७ से १८ । ६ तक। ___ भाषार्थ-मित्र, वरुण, विवस्वान्, अन्तःश प्रोत् काला, पृथ्वी, अन्तरिक्ष, के उत्शत और आकाश में फिरने हारे ग्रह
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