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द्वितीयोऽध्यायः ॥ (समीक्षा) कितने होम वर्ण ( शद्र ) आज तक ब्राह्म. गा हुए हैं ?। माफ २ लिखिये माज तक तो आर्यसमाजियों ने भी किसी जन्म के छद्र को ब्राह्मसा नहीं बनाया, यदि हमारे जोशी जी ने किसी शूद्र को व्यवस्था देकर ब्राह्मण बमाया होय तो बही जानें । इस विना प्रमागा की बात को कोई बुद्धिमान् नहीं माभंगा, ज्योतिष का प्रभाव सब लोगों पर बराबर है जो लोग पीढ़ियों से बढ़ हुये हैं वे सभी मानते हैं॥
(ज्यो० १० १० १५ १०६) वस उहों ने समझ लिया कि अपने उद्योग से कुछ भी नहीं होता जो करते हैं ग्रह करते हैं। समझलो कि पौरुष हीन होने का बीज बोया गया है। इमी रीति से पुश्तहां पुश्त तक देव देव कहते गये, लोगों ने उद्यम को निष्फल हमझा भाग्य और किस्मत को पूजने लगे।
(समीक्षा) ज्योतिष के किसी ग्रन्थ में पुरुषार्थ को छोमुकर भाग्य के भरोसे वैठना नहीं लिखा है। किन्तु उपाय
और उद्योग करने का उपदेश ज्योतिष अवश्य देता है। पा. ठक गण ! ध्यान देवें ज्योतिष का अभिप्राय यह है कि इस जन्म में जो कर्म किये जायंगे उसका फल इस जन्म में अधिक
और शेष परजन्म में अवश्य मिलेगा। जैसा कि भगवद्गीता में लिखा है कि "जिन योगियों का योग इस जन्म में मिटु न हुआ उन को दूसरे जन्म में स्वयं ज्ञान होकर योग की बातें विदिति हो जाती हैं ॥ यथा,, शुचीनांश्रीमतांगेहे योगभ्रष्टोऽभिजायते । अथवायोगिनामेव कलेभवतिधीमताम् ॥ तत्रतंबुद्धिसंयोगं लभतेपौर्वदेहिकम् ।
ज्योतिष के अनुमार उन के ग्रह ऐसे पड़ते हैं कि जिस से योगी होना सिद्ध हो, इसी प्रकार जिन लोगों ने अन्य जन्म में शुभ वा अशुभ कर्म किये हैं उन का फल इस जन्म में जो कुछ होगा भला या बुरा वह इस ज्योतिष से जाना जायगा।
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