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श्रावण सुदी में पर्युषणापर्व करते हैं शास्त्रानुकूल न होने से आज्ञाभङ्ग दोष है।
तीसरा दोष। अधिक मास के माननेवालों को चौमासी क्षमापना के समय “पंचण्हं मासाणं दसण्हं पक्खाणं पञ्चासुत्तरसयराइंदिआणमित्यादि" और सांवत्सरिक क्षमापना के समय "तेरसण्हं मासाणं छव्वीसण्हं पक्खाणं” पाठ की कल्पना करनी पड़ेगी। यदि ऐसा करोगे तो कल्पित आचार होने से फल से वञ्चित रहोगे, क्योंकि शास्त्र में तो “चहुण्हं मासाणं अट्ठाहं पक्खाणं” इत्यादि, तथा “बारसण्हं मासाणं चउवीसण्हं पक्खाणं" इत्यादि पाठ है इसके अतिरिक्त पाठ नहीं है। उसके रहनेपर यदि नई कल्पना करोगे तो कल्पनाकुशल, आज्ञा का पालनकरनेवाला है या नहीं, यह पाठक स्वयं विचार कर सकते हैं । और दूसरी बात यह है कि किसी समय सोरह (१६) दिन का पक्ष होता है और कभी चौदह दिन का पक्ष होता है उस समय ‘एक पक्खाणं पन्नरसण्हं दिवसाणं' इस पाठ को छोड़कर क्या दूसरी पाठ की कल्पना करते हो ? यदि नहीं करते तो एक दिन का प्रायश्चित्त बाकी रह जायगा। जैसे तुह्मारे मत में “चउण्हं मासाणं” इत्यादि पाठ कहने से अधिक मास का प्रायश्चित रह जाता है । यदि पाठ की नयी कल्पना करोगे तो क्या आज्ञाभङ्ग होने में
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