________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
उद्देशे में इसी तरह का पाठ है, उसे देखो और विचारो।
" अन्नया पजोसवणादिवसे आगए अन्जकालगेण सालवाहणो भाणिओ, भदवयजुण्हपञ्चमीए पज्जोसवणा-" इत्यादि ।
तथा “ तत्थ य सालवाहणो राया, सो अ सावगो, सो अ कालगजं इंतं सोऊण निग्गओ, अभिमुहो समणसंघो अ, महाविभूईए पविट्ठो कालगन्जो, पविट्ठहिँ अ भाणिअं, भद्दवयसुद्धपंचमीए पज्जोसविजइ, समणसंघेण पडिवण्णं, ताहे रण्णा भणिअं, तदिवसं मम लोगानुवत्तीए इंदो अणुजाणेयव्वो होहित्ति साहू चेइए अणुपज्जुवासिस्सं, तो छट्ठीए पजोसवणा किजइ, आयरिएहिं भणिअं, न वइति अतिक्कमितुं, ताहे रण्णा भणिअं, ता अणागए चउत्थीए पज्जोसविजति, आयरिएहिं भणिअं, एवं भवउ, ताहे चउत्थीए पजोसवियं, एवं जुगप्पहाणेहिं कारणे चउत्थी पवत्तिआ, सा चेवाणुमता सव्वसाहूणमित्यादि।
ऊपर की पाठ साक्षात् सूचित करती है कि भाद्र सुदी चौथ को साम्वत्सरिक प्रतिक्रमण वगैरह करना चाहिये । किन्तु जब दो श्रावण आवे तो श्रावण सुदी चौथ के रोज साम्वत्सरिक कृत्य करे ऐसा तो पाठ कोई सिद्धान्त में नहीं है तो आग्रह करना क्या ठीक है ? । दो भाद्र आवे तो किसी तरह पूर्वोक्त पाठ का समर्थन करोगे परञ्च सत्तर दिन में चौमासी प्रतिक्रमण करना चाहिये इसबात का समर्थन नहीं करसकते और अपनी प्रवृत्ति के विरोध को रोक नहीं सकते । जैसे फाल्गुन और आषाढ की वृद्धि होनेपर दूसरे फाल्गुन और दूसरे आषाढ में
For Private And Personal Use Only