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ज्योतिषचमत्कार ममीक्षायाः ।। शास्त्र के नाम से माना जायगा तब तक हिन्दुस्तान से हट नहीं सकता इत्यादि
( सनीक्षा ) फलित ज्योतिष को धक्के खा कर यूरोप से हिन्दुस्तान की शरण लेनी पड़ी,यह कथन श्राप का कपोलकल्पित और मिथ्या है, सत्य है तो प्रमाण ( सवत ) दीजिये, कौन किस समय में यूरोप से यहां फलित लाया, फलित यहां यूरोप से जहाज में आया नयका रेल में। और पहिले प्राप कह चके हैं कि यवनों के यहां से आया। और अव योप का ( फलित ) वताया, कहिये कौन वात श्राप की मच मानी जाय सच बूझो तो श्राप की दोनों बातें ठीक नहीं।
जोशी जी ! देखिये यरोप के प्रसिद्ध ज्योतिषी जिन्हों ने बृहत्संहिता का अंगरेजी अनुवाद किया है प्रोफेसर कार्ण. साहव लिखते हैं कि सन् ईवा के कई एक वर्ष पहिले गगसं. हिता बनी है, उक्त साहव के कथन से भी स्पष्ट प्रकट है कि ज्योतिष विद्या बहुत प्राचीन काल से भारतवर्ष में है । पर जोशी जी को इतना पता कहां से मिलेगा जो जी में पाया सो लिख दिया। अब रही धर्मशास्त्र की वात सो जव कि याजवल्क्य स्मृति आदि में ग्रहयाग ग्रहशान्ति ग्रहों की महिमा वर्णित है गृह्यसूत्रादि में अन्य पद्धतियों में भी ये विषय ठसाठस भरे हैं तो आप की वे सबत वात कौन मानम कता है ? सत्य है आप हजार पुस्तक लिख डाल लाख चेष्टा करै हिन्दुस्तान से ज्योति नहीं हट सकता । पाठक ! यहां से पृष्ठ ल तक साधारण वात लिखी हैं जिन की आलोचना करने की विशेष आवश्यकता नहीं है। ग्रन्थवृद्धि के भय से वे निरर्थक वात छोड़ दी गई हैं।
(ज्यो० च० पृ० ल पं० १५ देखिये--धनी निर्द्धन की स. मता किस प्रकार कर सकते थे, उन्ही दिनों यहां यवनज्योतिष चला था।२७ नक्षत्र और १२ राशि हैं, कोई किसी नक्षत्र में जन्मा कोई किसी नक्षत्र में ॥
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