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ज्योतिषचमत्कार समीक्षायाः मच्ची बातें हैं उनका भी वर्णन होगा, जो यवनों ने मिलाई हैं वे भी दिखाई जावेंगी ॥
(ममीक्षा) फिर वही तान? साफ २ ग्रन्थों का नाम क्यों नहीं लिखते । यवन ज्योतिष और मत्य ज्योतिष दो नहीं, किन्तु फ. लित तथा गगित दो भाग ज्योतिष के अवश्व माने जाते हैं। कदाचित् ताजिक तथा रमल ग्रन्थों से यवन ज्योतिष कह कर आप घबड़ाते हों तो फिर भी आपको भूल है। क्योंकि ये ग्रन्थ भी किसी ममय यवनों ने हमारे यहां से लेकर अपने ढंग में बना लिये हैं, इसका विशेष विचार भाग लिखा जायगा पर जातक मुहूर्तसंहिता ग्रहयाग ग्रह शान्ति न माननेवाला वैदिक धर्मी हिन्दू नहीं माना जाता ॥
( जोशीजी ) जो इस पुस्तक को ध्यान देकर पढ़ेगा उत्ते हमार कन्यादान को फल होगा उनके खोटे दिन दूर होंगे बल बीर्य पौरुष बढ़ेगा दुःख दरिद्र नाश होगा इत्यादि ।
(समीक्षा) यहां तो आपने पुराणों से भी अधिक माहात्म्य लिख डाला, तो अब गंगास्नान गोदान, पुराण पाठ इत्यादि सबसे बढ़ कर आपकी ही पुस्तक का पाठ रहा, वाह वाह ! भारतवर्ष दिन २ दरिद्र होता जाता है। प्लेग से दुःखी है, पुस्तक सुना कर उसके दुःख दरिद्र दूर क्यों नहीं करते हो ? । प्रमेहादि रोगियों को अव डाक्टर वैद्यों की आवश्यकता होगी या नहीं, क्योंकि बल वीर्य तो आपको पुस्तक के पाठ से बढ़ा लेंगे। धन्य है ! बल और वीर्य ब्रह्मचर्य से बढ़ता है आपकी पुस्तक से नहीं, अतएव ऋषिकुल ब्रह्मचर्याश्रम स्था. पित कराइये ॥
पाठक ! इसके पश्चात् द्विवेदी जी का गीत गाकर जोशी साहब ने भूमिका समाप्त की है। द्विवेदी जी के विषय का उत्तर आगे लिखा जायगा भमिका की समीक्षा पूरी हुई । शुभमस्तु
रामदत्तज्योतिर्विद्
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