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प्रथमोऽध्यायः ॥
२१
पान सम्बन्ध बन्द करने लगे । बाप बेटे के हाथ से नहीं खाता, भाई भाई के हाथ से परस्पर जिन लोगों में रिश्तेदारी होती थी सो सब बन्द हुई । और नये २ पन्थ नये २ समाज घर २ में खड़े हुए। हाय ! कौन स्वामी शंकराचार्य की भांति भारत में जन्म लेकर धांसू पोंगा ? ॥
“जोशी जी पृ० १२ पं १६" में लिखते हैं कि समता के लाने को साम्य चला पर उलटी विषमता फैली। यहां तक कि लड़की के लिये २३ जन्मपत्रियां भी कठिनता से मिलती हैं, यदि उनसे माम्य न हुआ तो फिर मौत है । इसी विपत्ति को देख कर मैंने इसकी खोज की इत्यादि
(समीक्षा) उत्तम तो यह होता कि यदि छाप देश में सदा चार तथा धर्म शिक्षा के प्रचार के निमित्त धर्म सभा स्थापित कराते तथा देश में शिल्प वाणिज्यादि के द्वारा धनवृद्धिद्रव्यरक्षा घृत दुग्ध की वृद्धि के लिये गोरक्षा अन्नरक्षिणी सभा के द्वारा अन्न की रक्षा की चेष्टा कराते देश में घर २ मंगल आनन्द होता तो स्वयं एक २ कन्या के लिये १०० सौ सौ जन्मपत्र मिलने लगती । यथा योग्य साम्य होने से फिर बिधवा कोई न होती पाठक ! महामण्डलादि धर्म सभायें इसी चेष्टा और उद्योग में हैं पर हमारे डिप्टी साहब को उलटी बात सूझी । एक कहावत याद आई है किसी मे अपने भाई से कहा कि “भाई ! बूढ़ा बाप बीमार है क्या करें दूसरे भाई ने कहा जहर दे दो यह तो नहीं कि कुछ इलाज करो" बड़ी कहावत यहां भी हुई वाह वा ! अच्छी खोज की ॥
॥ प्रथम अध्याय समाप्त हुआ ॥
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