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ज्योतिषचमत्कार समीक्षायाः
उसको
दृश्य करनेवाले ग्रह हैं । ग्रहों से हमारा क्या मम्बन्ध है ? रहा इसका उत्तर सो जब आपका सारा काम ही ग्रहों से चलता है तो फिर सम्बन्ध पूछना केमा ! सम्पूर्ण नवग्रहों की कौन कहे एक सूर्य का ही प्रताप देखिये जो जगत् का प्रकाशक है, जग चक्षु कहलाता है इसी के उदय से हम सर्व कार्यों में प्रवृत्त होते हैं। मनुष्य के शरीर में जो उष्ताता है वह सूर्य ही की है, और शीत उष्या दृष्टि अनावृष्टि ये सम्पूर्ण ग्रह जन्य, केवल शिशिर वसंत ग्रीष्म ही इसके साक्षी भूत नहीं, किन्तु इस की सत्यता हमारी प्रकृति से ही सिद्ध हो सकती है। क्यों कि जब ऋतु मेघाउछन् तथा क्षीण होता है तो हमारा शरीर निरुत्साह तथा शिथिल व क्षीण हो जाता है। जब ऋतु उज्वल कान्तिमानू होता है तब चित्त भी मानंद कान्तिमान् होता है । जब सूर्य आदी नक्षत्र पर जाता है तब श्वानों को जल भय रोग होता है, क्योंकि आर्द्रा नक्षत्र की श्वान योनि है, जब इस पर सूर्य प्राते हैं तब कुत्तों पर असर होता है । जब सूर्य वृष राशि पर प्राते हैं तब मनुष्यों की प्रकृति में उष्णता बढ़ जा तो है, प्रायः महामारी हम ऋतु में होती है। जब कन्या राशि के सूर्य होते हैं तब विषम ज्वर (मलेरिया) फैलता है, मनुष्यों का सुख दुःख बीमारी तन्दुरुस्ती ऋतु के आधार पर है, ऋतु कर्ता ग्रह हैं तो मिट्ट हो गया कि मनुष्य के जीवन के हर्त्ता कर्त्ता ग्रह ही हैं। जो लोग सूर्य के समीप उष्ण कटिबन्ध में रहते हैं वे प्रायः काले ( हवसी इत्यादि) होते हैं। और जो परोपदेश ( पृथिवी के वायव्य कोण में है) भोन की मेष राशि के समीप है प्रत वहांवाले रक्त मुख श्वेत वर्ण होते हैं । इसी प्रकार
सम्पूर्ण ग्रहों का प्रभाव जानना चाहिये,
प्रश्न - गणित सत्य है फलित नहीं. एक लग्न में दो गुग्म बालक तथा दरिद्री चक्रवर्ती जन्मते हैं उनका भाग्य एकमा क्यों नहीं होता ।
उत्तर - गणित रूपी वृक्ष का फलित रूपी फल है जैसे
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