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श्रीगणेशायनमः ।
भमिका
सोम-नक्षत्रमलकाभिहतंशमस्तनः॥
पाठकगगा ? किसी समय में यह भारतवर्ष सम्पूर्ण विद्यानों का भाण्डार था, जिस काल में पथ्वी के अधिकांश भाग में अ. मभ्यता पूर्ख हो रही थी, उम समय इस देश में ज्ञान विज्ञान, ज्योतिष, भषजतत्व, काव्य, साहित्य तथा धर्मादि विषयों की पूर्ण उन्नति हई थी। __ पश्चिमी लोग अमेरिका प्रादि देशों का नाम तक भी जिस समय में नहीं जानते थे, भारतवर्ष के ज्योतिषियों ने उस से महुन काल पूर्व तामे तथा पीतलादि के भगोल (न कसे) बनालिये थ, और भगोस् खगोल का बहुत कुछ वृत्तान्त भभभांति जानते थे, कारगा कि ऋषि मुनियों ने सत्य युग के बने हुए ग्रन्थों में विस्तार सहित यह विषय लिख दिया था। .
यथा ( सूर्यसिद्धान्त ) भवृत्तपादेपूर्वस्यां यमकोटीतिविश्रुता । भद्राश्ववनगरी, स्वर्णप्राकारतोरणा॥ याम्यायांभारतेवर्ष लङ्कातद्वन्महापुरी। पश्चिमेकेतुमालाख्ये रोमकाख्याप्रकीर्तितो॥ उदसिद्धपुरीनाम कुरुवर्षेप्रकीर्तिता। तस्यासिद्धामहात्मानो निवसन्तिगतव्यथा:॥ इसीप्रकार यूरुप के विद्वान् पृथ्वी की भांति तारों (ग्रहों) में वसामत अघ मानने लगे हैं। पर हमारे शास्त्रों में यह बात पहिले ही से लिखी है। सर्यलोक, चन्द्रलोक, भौमलोक, सब पथक २ लोक हैं । जिस समय विमानों का प्रचार था इन सब लोकों की यात्रा होती थी। रावणा ने पुष्पक विमान में चढ़ कर चन्द्रलोक पर जब चढ़ाई की सब, माथ के राक्षस शीत से अक. ड़ने लगे इत्यादि, यात्मीकीय रामायणादि की कथाओं से प्र
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