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नीचे लिखी हुई देखोः" जइ जुग मज्झे तो दो पोसा जइ जुग अन्ते दो आसाढा"
यद्यपि जैन पञ्चाङ्ग का विच्छेद होगया है तथापि युक्ति और शास्त्रलेख विद्यमान हैं । किन्तु लौकिक पञ्चा. ङ्गानुसार अधिक मास को भी लेखा में गिननेवाले महाशयों से पूछता हूँ कि यदि आश्विन दो होंगे तो साम्वत्सरिक प्रतिक्रमणानन्तर सत्तरवें दिन में चौमासी प्रतिक्रमण करोगे कि नहीं, यदि नहीं करोगे तो समवायाङ्ग सूत्र के पाठ की क्या गति होगी ? । अगर चौमासी का प्रतिक्रमण करोगे तो दूसरे आश्विन सुदी पूर्णमासी के पीछे विहार करना पड़ेगा। आश्विन मास को लेखा में न गिनकर सत्तर दिन कायम रक्खोगे तो श्रावण अथवा भाद्रमास को लेखा में न गिनकर पचास दिन कायम रखकर भगवान् की आज्ञा के अनुसार भाद्र सुदी चौथ के रोज साम्वत्सरिक प्रतिक्रमण क्यों नहीं करते ? । कदाचित् ऐसा कहो कि चौमासे की मर्यादा आसाढ सुदी चतुर्दशी से कार्तिक सुदी चतुर्दशी तक बांधी हुई है तो वह वहां ही पूरी होगी अन्यत्र नहीं होसकेगी, तो पर्युषणापर्व की मर्यादा कालिकाचार्य महाराज से भाद्रपद सुदी चौथही को बंधी हुई है वह कैसे बनेगी क्योंकि पर्युषणाकल्पचूर्णि, तथा महानिशीथचूर्णि के दसवें
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