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( ४२ ) ईश्वर की प्रशंसा और उपासना करना जड़के विना ग्रहण करने के असम्भव है, क्योंकि यदि आप जड़के विना कारण ईश्वर की उपासना करना चाहोगे तो आपको हूं, हां,कौन, और क्यों, आदि पदों को त्याग कर मूक बनकर मोक्ष मार्ग को सिद्ध करना पड़ेगा। __ आर्य-माना कि पद जड़ हैं परन्तु इनसे हम प्रशंसा तो सच्चिदानन्द की ही करते हैं। ___ मन्त्री-महाशय जी ! निस्सन्देह इस प्रकार से तो हम भी मानते हैं कि मूर्ति जड़ पदार्थ है परन्तु इसके कारण से हम मूर्तिवाले ईश्वर की पूजा करते हैं वा यह कि हमारी प्रार्थना भी मूर्ति के कारण ईश्वर परमात्मा की ही होती है। इसलिए मूर्तिपूजा से आपको विरुद्ध होना योग्य नहीं है क्योंकि तत्वपदार्थ के प्राप्त करने में जड़ भी कारण हो सक्ता है। अच्छा अब आप यह बतलाइए कि यदि किसी महर्षि का शुद्धभाव से दर्शन किया जाए तो इसका फल अच्छा प्राप्त होगा कि नहीं ?
आर्य-अजी क्यों नहीं, अवश्य अच्छा फल प्राप्त होगा।
मन्त्री-अब आप यह बतलाएं कि महात्मा जी के जीवास्मा का दर्शन हुआ या जड़ शरीर का ? तो इसके उत्तर में आपको कहना पड़ेगा कि अरूपी जीवात्मा का तो दर्शन नहीं हो सक्ता, महाराजजी के शरीर का ही दर्शन हुआ । अब ध्यान करना चाहिए कि यदि मनुष्य जड़ शरीर के देखने से पुण्य उत्पन्न कर सक्ता है तो क्या परमात्मा की निर्दोष मूर्ति से पुण्यबंधन नहीं कर सकेगा ? अवश्य प्राप्त कर सकेगा।
आर्य-श्रीमन् ! महर्षि का दृष्टान्त तो मूर्ति से कदाचित् सम्बन्ध नहीं रखता है क्योंकि महर्षि जी के दर्शन से तो इस
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