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( ४१ ) वास्ते पुएय होता है कि वह हमको शिक्षायुक्त बातों का उपदेश करते हैं जिस पर वर्ताव करने से हम बहुत कुछ लाभ उठा सक्ते हैं परन्तु मूर्ति हमको कुछ भी उपदेश नहीं कर सक्ती और नही कोई लाभ देस की है, इसलिए मूर्ति का मानना ठीक नहीं है। .
मन्त्री-महाशय जी ! आपका यह कथन सत्य है कि महर्षि जी अच्छी बातें और अच्छा उपदेश सुनाते हैं, जिससे हमें लाभ होता है, परन्तु आप यह तो बताओ कि यदि हम महर्षि जी के कहने पर वर्ताव न करें तो क्या महर्षि जी के दर्शन से हमें कोई लाभ या फल मिल सक्ता है ? कदाचित नहीं। क्योंकि याद महर्षि जी के कहने पर ध्यान और वर्ताव ही न किया जाएगा और इनकी बातों पर निश्चय भी नहीं किया जाएगा तो केवल महर्षि जी के मुख देखने से तो हमारा कल्याण कदापि नहीं हो सकेगा, इससे सिद्ध हुआ कि फलका प्राप्त करना वा न करना हमारे ही आधीन है। और जबकि हमको निश्चय दिलाने
और वर्ताव करने से ही शिक्षा मिल सक्ती है तो फिर इसमें महर्षि जी की क्या बड़ाई हुई क्योंकि फलका प्राप्त करना हमारे ही हाथ में है, इसमास्ते हम अपनी भावना करके मूर्ति से भी अवश्य अच्छा फल प्राप्त कर सक्ते हैं। हम वीतराग ईश्वरमूर्ति की वीतराग आकृति को देख कर वीतराग बनने की इच्छा वा यन करें, और उनके गुणों का स्मरण करें, और उनके गुणों को ग्रहण करके रागद्वेष के परिणाम को रोकें, तो निस्सन्देह मूर्ति हमें तारने वाली होती है । आप भी इस बातको ऊपर मान चुके हैं कि यदि हम शिक्षा मानकर इस पर वाव करेंगे तो हमारा ही लाभ होगा ॥ और सुनिए मैं आपको एक
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