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(६७ ) विमान द्वारा लोटे, तो सीता जी को उन्हों ने उन २ स्थानों का पता बताया कि जहां २ पर वे सीता जी के वियोग में धूमते रहे थे, रामचन्द्र जी कहते हैं कि
एतत्तु दृश्यते तीर्थ सागरस्य महात्मनः । यत्र सागरमुत्तीर्य तां रात्रिमुषिता वयम् ॥ एष सेतुर्मया बद्धः सागरे लवणार्णवे । तव हेतो विशालाक्षि ! नलसेतुः सुदुष्करः ।। पश्य सागरमक्षोम्यं वैदेहिवरुणालयम् । अपारमिव गर्जन्तं शङ्खशुक्ति समाकुलम् ॥ हिरण्यनाभं शैलेन्द्रं काञ्चनं पश्य मैथिलि ! । विश्रामार्थ हनुमतो भित्त्वा सागरमुत्थितम् । एतत्कुक्षौ समुद्रस्य स्कन्धावार निवेशनम् ।। अत्र पूर्व महादेवः प्रसादमकरोद्धिभुः । एतत्तु दृश्यते तीर्थ सागरस्य महात्मनः ॥ सेतुबन्धं इतिख्यातं त्रैलोक्येन च पूजितम् । एतत्पवित्रं परमं महापातकनाशनम् ॥ इति
रामचन्द्र जी कहते हैं कि हे सीते ! यह समुद्र का तीर्थ दीखता है जिस जगह हमने एक रात्रि को निवास किया था, यह जो सेतु दीखता है इसे नल की सहायता से तुझे मात करने के लिए हमने बांधा था । जस समुद्र को तो देखो जो वरुण देव का घर है कैसी ऊंची लहरें उठरही हैं जिसका ओर छोर नहीं दीखता. नाना प्रकार के जल जन्तुओं से भरे तथा शंख
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