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( ७४ ) मातमा होगी, वह आश्य कामी होगा। वर्तमान काल में कोई मनुष्य गुरु या पार होकर स्त्रीको साथ रखे तो लोग उसको अच्छा नहीं समझते , तो फिर जो परमेश्वर होकर स्त्री को साथ रक्खे, वह वीतराग परमात्मा कैसे होसक्ता है ? कदापि नहीं हो सक्ता । और जिसके पास चक्र, त्रिशूल, धनुर्वाण या तलवार, इत्यादि शस्त्र हो तो उसको अवश्य कोई भय होगा, या किसी शत्रुके मारने का संकल्प होगा, क्योंकि आवश्यकता के विना शस्त्रों का रखना मूर्खता को प्रकट करता है। यदि कहा जावे कि वह अपने महत्व के लिए शस्त्र रक्खता है तो वह ईश्वर परमा: स्मा ही नहीं होसक्ता, क्योंकि ईश्वर को दर्शनीयता और महत्व की कोई आवश्यकता नहीं, इसवास्ते जिस मूर्ति के साथ शस्त्र होवें वह पूजने के अयोग्य होती है। और जिसके हाथ में माला है, वह किसी दूसरे का जप करता होगा परन्तु ईश्वर परमात्मा ने किसका करना था, क्योंकि इससे बड़ा और कोई है नहीं, कि जिसका यह जपन करे, इसवास्ते माला वाली मूर्ति भी पूजने के योग्य नहीं है। और जिस मूर्तिका वाहन है, वह भी दूसरों को दुःख दाता है, परन्तु ईश्वर परमात्मा तो दयालु है किसी को दुःख नहीं देता । इसवास्ते सवारी वाली मूत्ति भी पूजने के योग्य नहीं। जिसके पास कमण्डलु है वह भी किसी आवश्यकता के लिए होगा परन्तु ईश्वर परमात्मा को किसी की आव: श्यकता नहीं है, इसलिए कमण्डलु वाली मूर्ति भी पूजने के योग्य नहीं । अन्त में सभा को विचार करना चाहिए, क्या ऐसी मूर्तियां देखकर ध्यान और भाव शुद्ध होसक्ते हैं ? कदापि नहीं। प्रत्युत ऐसी मूर्तियां देखकर तो उनके इतिहास स्मरण
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