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( ७३ ) देने को कुच्छ आवश्यकता नहीं है और यदि उसे भी लेने देने की इच्छा है तो वह ईश्वर ही न रहा, तब तो हमारे जैसा . ही समझना चाहिए। पाठकगणो ! इस विषय में पुस्तक बढ़ने के भय से अधिक नहीं लिखा गया, यदि आपको सम्यक् प्रकार से इस विषय के देखने की इच्छा हो तो आप चिकागु प्रश्नोत्तर जसवंतराय जैनी लाहौर से मंगवा कर पढ़ लेवें। *
प्यारे ! एक बात मैं आपको और सुनाता हूं जो कि समझने के लायक है। स्मरण रखना चाहिए कि जिनेश्वरदेव की मूर्ति सर्वदैव रागद्वेष से पृथक् और अन्य मतानुयायियों की मूर्तियां सांसारिकविषययुक्त प्रतीत होती हैं। किसी की मूर्ति के साथ स्त्री की मूर्ति है किसी मूर्ति के हाथ में शस्त्र है,किसी मूर्तिके हाथ में जपमाला है किसी के हाथ में कमण्डलु है और कोई मूर्ति वृषभ पर आरूढ़ है और कोई गरुड़पर इत्यादि२॥यह सर्व अवस्थाएं सांसारिक हैं जिनमें मनुष्य अनादिकाल से ही प्रतिदिन लगा हुआ है, परन्तु मुक्ति का मार्ग सांसारिक दशाओं में लगे रहने से नहीं मिलता है प्रत्युत इसके त्याग करने से प्राप्त होसक्ता है इसलिए मप्तीद और मन्दिर इत्यादि में सांसारिक दशा के प्रतिकूल समझाने वाले कारणों का होना आवश्यक है । जैसा कि जैनियों की मूर्तियां शान्त दान्त निर्विकारी स्त्रीरहित निःस्पृह किसी वाहन के बिना रागद्वेष से विमुख होती हैं। यह बात निसंदेह है जैसा कोई होता है उसकी मार्त भी वैसी ही हुआ करती है। विचार करना चाहिए कि जिसकी मूर्ति के साथ स्त्री की
___ * इसी को जीरा जिला फिरोजपुर निवासी लाला राधा मल के पुत्र लाला नत्थूराम जी ने उर्दू में छपवाया है, उर्दू जानने वाले महाशय उन से मंगवा कर पढ़ सकते हैं।
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