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आर्य-यह बात तो अपकी सत्य है परन्तु जड़की पूजा करने से चेतन का ज्ञान कदापि नहीं हो सक्ता है।
मन्त्री-महाशय जी! यदि ऐसे माना जाए तो जड़ वेदों से भी चेतन ईश्वर परमात्मा का ज्ञान न होना चाहिए, परन्तु आपका विश्वास है कि वेदों से ईश्वर परमात्मा का ज्ञान प्राप्त होता है इसलिए सिद्ध हुआ कि जड़ पदार्थ से चेतन का ज्ञान ज्ञात हो सक्ता है।
आर्य-भला यदि कोई तुम्हारी मूर्तिओं के भूषण चुरा कर लेजाए या मूर्तिको तोड़ देवे या निरादर करे तो वह मूर्ति इसका कुच्छ नाश नहीं कर सक्ती है, तो फिर हमको वह क्या लाभ पहुंचा सक्ती है ?॥
मन्त्री-महाशय जी! याद आप ऐसा मानते हो तो फिर तो आपको ईश्वर परमात्मा को भी न मानना चाहिए, क्योंकि बहुत से नास्तिक लोग ईश्वर को नहीं मानते, प्रत्युत भला बुरा कहते हैं कि ईश्वर कौन है और क्या वस्तु है इत्यादि २॥ परन्तु ईश्वर परमात्मा इनका कुछ नहीं कर सक्ता। इसलिए तुम्हारे विश्वास के अनुसार तो ईश्वर को भी न मानना चाहिए,
और क्या ईश्वर परमात्मा पहिले न जानता था कि यह पुरुष मुझको नहीं मानेंगे, मैं इनको उत्पन्न न करूं, यदि जानता था तो मानो ईश्वर भी. बहुत मूर्ख है जो जान बूझकर अपने शत्रु: उत्पन्न करता है और यदि नहीं जानता था तो ईश्वर ब्रह्मज्ञानी न रहा । महाशय नी ! ऐसा मानने से तो आपके ईश्वर पर कई तरह के आक्षेप होसक्ते हैं, परन्तु वस्तुतः तो केवल इतनी बात
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