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( ४४ ) दृष्टान्त सुनाता हूं और यह सिद्ध करके दिखलाता हूं कि कइ एक चैतन्य पुरुषों से भी हमें इतना लाभ नहीं प्राप्त हो सक्ता जितना कि जड़ वस्तु से, यथा एक मनुष्य जोकि बड़ा विद्वान् है और ऐसी अच्छी २ शिक्षाएं दे रहा है कि जिनका वर्णन करना शक्ति से बाहिर है परन्तु इसको अपने मतका उपदेश न समझने वा इसका वर्णन अपने मतके प्रतिकूल देखने से और इसके वचनों पर निश्चय न करने के कारण हम इसके उपदेश पर वर्ताव नहीं करते , प्रत्युत ऐसा ध्यान करते हैं कि ऐसे मूर्ख प्रायः उपदेशक फिरते ही हैं,अब आपही बतलाइए कि क्या इस चैतन्य से हमारा कल्याण हो सकता है ? कदाचित् नहीं होसक्ता,
और यदि हम इससे घर बैठे ही अपने मतके जड़ पुस्तकों को विचारें वा पढ़ें और इसकी बातों पर अपना धर्मशास्त्र होनेके कारण निश्चय करके यथाकथन पर वर्ताव करें तो निस्सदेह उस जड़ पुस्तक से हमको बहुत कुछ लाभ प्राप्त होसक्ता है । अब आपही न्याय से कहें कि चैतन्य लाभ देने वाला हुआ वा जड़ शास्त्र ?। आपका यह कहना कि जड़से कुच्छ लाभ प्राप्त नहीं होसक्ता' प्रत्युत व्यर्थ और मिथ्या सिद्ध हुआ॥ - आर्य-हां साहिब ! आपकी युक्ति तो वस्तुतः सत्य है परन्तु इसमें केवल इतना ही संदेह है कि निराकार ईश्वर का आकार कैसे बन सक्ता है।
मन्त्री-महाशय जी ! आप यदि ध्यान से विचार करेंगे तो अवश्य समझ जायेंगे, कि निराकार साकार भी होसक्ता है आपके कथनानुकूल ईश्वर निराकार है परन्तु साकार वाले ओंकार शब्द में ही इसका समावेश हो जाता है और देखें आप
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