________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( ५१ ) भी आप में अवश्य आजाएंगे । और जब बुद्धि पत्थर होजाएगी तो आप भी पाषाणवत् जड़ होजाएंगे। ___ मन्त्री-अहहह ! आपकी बुद्धि और तर्क का क्या ही कहना है, तनक आंख तो बोलो कि अतिमूर्व भी जानता है कि स्त्री की प्रतिमा देखकर काम तो निःसंदेह उत्पन्न होता है कि वह मनुष्य स्त्री नहीं बनजाता है । इस प्रकार वीतरागदेव की शान्तोदान्त मूर्ति को देखकर शान्तोदान्त तो हो सक्ते हैं न कि जड़ बनजाते हैं । और यदि आपका भाव ऐसाही है तो फिर तो तुम भी जड़रूप ओं शब्द के देखने से जड़ बन सक्ते हो और आपने तो अनेक वार ओं शाद को देखा होगा, परन्तु जड़ न हुए।
आर्य-नहीं जी, आपका कहना असत्य है. क्योंकि ओं शब्द के देखने से तो हमको परमात्मा स्मरण होता है ।
मन्त्री -महाशय जी ! इस तरह से हमको भी मूर्ति के देखने से ईश्वर परमात्मा स्मरण आते हैं, और यह प्रख्यात नियम है कि कोई कार्य कारण के विना कदापि नहीं होसक्ता, इस प्रकार भाव भी कारण के विना उत्पन्न नहीं होसक्ता। - आर्य-श्रीमन् ! सुनिए, मूर्ति के विषय में और भी एक बड़ा भारी : कि मूर्ति तो जड़ होती है फिर उस जड़ मूर्ति से चेतन ईश्वर का ज्ञान कैसे होसक्ता है। ... मन्त्री-महाशयजी! हम जड़मूर्ति से चेतन का काम नहीं
लेते, क्योंकि परमात्मा की मूर्ति तो 'जोकि जड़रूप है केवल · अच्छे भावों को 'जोकि वह भी जड़रूप है' उत्पन्न करने वाली है। और शास्त्र और मूर्ति आपस में जुगराफिया और चित्रवत्
For Private And Personal Use Only