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नानारूप धारण कर ठहरा हुआ है वही पहिले सृष्टि के आरम्भ में हिरण्यगर्भ रूपसे उत्पन्न हुआ और वही गर्भ में भीतर आया वही उत्पन्न हुआ और वही उत्पन्न होगा जो कि सबके भीतर अन्तःकरणों में ठहरा हुआ है और जो नाना रूप धारण करके सब ओर मुखों वाला होरहा है ॥ और भी देखो, यथा__ आयो धर्माणि प्रथमः ससाद ततो वषिकृणुषे पुरुणि,अथर्व० ५।२॥१॥२॥ ___ अर्थ-हे ईश्वर ! जिन आपने प्रथम सृष्टि के आरम्भ में धर्मों का स्थापन किया, उन्हीं आपने बहुत से वपु नाम शरीर अवतार रूपसे धारण किये हैं। वपु नाम शरीर का संस्कृत में प्रसिद्ध है। तथा'एह्यश्मानमातिष्ठाश्मा भवतु ते तनूः।
अथर्व० २।१२।४। अर्थ-हे ईश्वर ! तुम आओ और इस पत्थर की मूर्ति में स्थित होओ और यह पत्थर की मूर्ति तुम्हारा तनू नाम शरीर बनजाए अर्थात् शरीर में जीवात्मा के तुल्य इस मूर्ति में ठहरो इसकी पुष्टि में उपनिषद् तथा ब्राह्मणभागादि के मिल सक्ते हैं। ___ और देखिए यजुर्वेद के १३ अध्याय के ४० मन्त्र में यह लिखा है । यथा. "आदित्यं गर्भ पयसा समाधि सहस्रस्यप्रतिमां विश्वरूपम् । परिवृधि हरसामाभिमं ७ स्थाः। शतायुषं कृणुहि चीयमानः" ॥
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