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( ६० ) प्रमुख धन्वनस्त्वमुभयो राज्यों ाम् । याश्वतेहस्त इषवः पराता भगवो वप ॥
मंत्रार्थ--भगवः धन्वनः उभयोः आयोः ज्याम् त्वम् :मुञ्च च याः ते हस्ते इषवः ताः परावप।
आषार्थ-हे परैश्चर्यसम्पन्न ! भगवन् ! आप धनुष की दोनों कोटिओं में स्थित ज्या को दूर करो (उतारलो) और जो आपके हाथ में बाण हैं उनको दूर त्याग दो, हमारे निमित्त सौम्य मूर्ति हो जाओ॥ - इससे भी ईश्वर शरीरधारी सिद्ध होता है, क्योंकि शरीर के विना हस्त और पादों का होना असम्भव है।
और देखिए, यजुर्वेद के १६ अध्याय के २९ मन्त्र में ऐसे लिखा हैं। यथा
___नमः कपर्दिने च' इत्यादि
अर्थ-इस मन्त्र में कपर्दी शब्द है उसका अर्थ 'जटाजूट धारी' को. नमस्कार हो ऐसे किया है । अब सोचना चाहिए कि जटा शिर के विना नहीं होसक्ती, इससे भी ईश्वर शरीर धारी सिद्ध हुआ ॥ ___ और देखिए, यजुर्वेद के ३२ आध्याय में ऐसा लिखा है।
एषोहदेवः प्रदिशोऽनुसाः पूर्वोहजातः सउगर्भे अन्तः । सएव जातः स जनिष्यमाणः प्रत्यड्जना स्तिष्ठति सर्वतो मुखः॥
अर्थ-यह जो पूर्वोक्त पुरुष ईश्वर सब दिशा विदिशाओं में
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