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अर्थ-इस मन्त्रका महीधर ने भी यही भाष्य किया है, इसका सीधा २ अक्षरार्थ यही है कि तीन नेत्रों वाले शिवजी की पूजा हम करते हैं मुगन्धित पुष्टिकारक पका खरबूजा जैसे अपनी लता से पृथक् हो जाता है उसी तरह हमको मृत्यु से बचाकर मोक्षपद की प्राप्ति कराइए । इति।
देखिए, इस श्रुति से ईश्वर शरीरधारी सिद्ध होता है क्योंकि नेत्रों का होना शरीर के बिना असम्भव है, परन्तु स्वामि दयानन्द जीने त्र्यम्बकं पदका अर्थ तीन लोक की रक्षा करने वाला लिखा है, परन्तु इस पदका यह अर्थ किसी प्रकार से भी नहीं होसक्ता है । और देखिए सनुस्मृति के चतुर्थ अध्याय के १२५ श्लोक में भी लिखा है । यथामैत्रं प्रसाधनं स्नानं दन्तधावनमञ्जनम् । पूर्वान्ह एव कुर्वीत देवतानाच पूजनम् ॥ .. इसका यह अर्थ है शौचादि स्नान और दातन आदि काकरना
और देवताओं का पूजन प्रातःकाल ही करना चाहिए । देखिए यहां भी देवताओं की पूजा से मूर्तिपूजा सिद्ध होती है । यथानित्यं स्नात्वा शुचिः कुर्याद्ववर्षि पितृतर्पणम् । देवताऽभ्यर्चनं चैव समिदाधान मेवच ॥ ___ अर्थ-नित्यप्रति स्नान करके प्रथम देव, ऋषि तथा पितरोंका तर्पण अपने गृह्योक्त विधि से करे, तदनन्तर शिवादि देव पतिमाओं का अभ्यर्चन नाम सम्मुख पूजन करे तिसके बाद विधि पूर्वक ममिदाधान कर्म करे। यहां देवताभ्यर्चन पदसे माता
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