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( ५२ ) सम्बन्ध रखते हैं क्योंकि शास्त्र तो जुगराफिए की तरह वैराग्य भाव और ईश्वर के स्वरूप को वर्णन करने वाला और मूर्ति ही इसकी प्रतिमा बनाई हुई है जैसेकि शास्त्र जड़ हैं परन्तु अच्छे भावों के उत्पन्न करने वाले हैं, तथैव मूर्ति भी निस्सन्देह जड़ है परन्तु अच्छे भावों को 'जिन से ईश्वर का ज्ञान होता है, उत्पन्न करने वाली है। और संसार में ऐसा कोई भी मत नहीं है जोकि मूर्ति को किसी न किसी तरह न मानता हो या पूजा न करता हो । यदि किसी मतानुयायी पुरुष आकार वाली मूर्ति को न मानते होंगे और उसका सन्मान न करते होंगे, तो वे वेद कुराण अंजील इत्यादि अपनी पवित्र पुस्तकों को 'जोकि आकार वाली है ' अवश्य मानते और सन्मान करते होंगे।
(नोट मन्त्री की ओर से) __ यह बात सभा पर प्रकाशित हो कि आकार वाली वस्तु को मूर्ति के नाम से प्रख्यात कर मक्ते हैं।
आर्य-श्रीमन् ! क्योंकि मूर्ति जड़ है, इसलिए इसकी उपासना से मनुष्य भी जड़ होजाएगा ॥
मन्त्री-बड़े शोक की बात है कि मैं अनेक युक्तिओं से इस बात को सिद्ध कर चुका हूं, परन्तु आप वारंवार वह ही प्रश्न करते हैं । अच्छा और भी दोचार दृष्टान्तों से आपको समझाता हूं कि जड़ पदार्थकी पूजा से मनुष्य जड़ नाह होसक्ता, प्रत्युत इस बात के विरुद्ध जड़ पदार्थों से बहुत लाभ प्राप्त होतेहैं। देखिए, कि ब्राह्मी नाम बूटी एक जड़ पदार्थ है, परन्तु इसके खाने से चेतनता बढ़ती है, इससे सिद्ध हुआ कि जड़ में भी ज्ञान को बढ़ाने की शक्ति है। और देखिए कि किसी वक्त जड़
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