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( ३६ ) पूजा करता है । ऐ मौलवी साहिब ! आप तनक पक्षपात को छोड़ कर ध्यान करें तो आप लोगों का भी मूर्तिपूजा के विना निर्वाह कदाचित नहीं होगा। मोलवी साहिब लज्जित होकर चुप्प होगए। मन्त्री जी फिर सिक्ख साहिब की ओर ध्यान देकर कहने लगे कि ऐ भाई साहिब ! आप मूर्तिपूजा को क्यों नहीं मानते ?।
सिक्ख-नहीं जी हम जड़ मूर्ति को किसी प्रकार भी नहीं मानते।
मन्त्री-क्यों जी भला आप गुरुनानक. जी और गुरु गोविन्दसिंहजी की मूर्तिओं को देखकर प्रसन्न होते हैं वा नहीं।
'सिक्ख-भला साहिब, गुरु की मूर्ति देखकर पुरुष रुष्ठ कैसे होसक्ता है । हम तो प्रसन्न होते हैं, क्योंकि इन्हों ने धर्म की रक्षा के लिए प्राणों की भी परवाह नहीं की है। और ऐसे ही गुरु नानक जी साहिब और गुरु गोविन्दासंह जी जिनको कि भविष्य पुराण में भी अवतारों में माना है । भला इनके चित्र देख कर हम रुष्ठ हो सक्ते हैं ?। और यदि रुष्ठ होते हों तो द्रव्य खर्च करके इनके चित्र अपने मकानों में क्यों रक्खें। और चित्रकारों को रुपैया देकर इनके चित्र दीवारों पर क्यों बनवाएं।
मन्त्री-क्यों जी आप लोक अपने गुरुओं की मूर्तिओं के आगे शिर झुकाते हो वा नहीं। और उनका सन्मान करते हो वा नहीं।
सिक्ख-हां जी जरूर।
मन्त्री-मूर्ति के सन्मुख शिर झुकाना और उसका सन्मान करना क्या मूर्तिपूजा नहीं है ?। मूर्ति के सन्मुख शिर झुकाना और उसका सन्मान करना मूर्ति पूजा ही है। कोई किसी प्रकार करता है और कोई किसी प्रकार से करता है। कोई किसी
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