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( २१ ) सेवा पूजा करने योग्य होगई, जब तीर्थङ्कर महाराज की डाढ़ा सेवा पूजा के योग्य होगईं, तो फिर तीर्थङ्कर भगवान की मूर्ति क्यों पूजने योग्य नहीं होसक्ती ?। अवश्य ही पूजने योग्य है । अतः चैत्य शब्द का अर्थ जो हमने किया है वह ही ठीक है. और पूर्वाचार्यों ने यही अर्थ किया है ॥
दंढिया-चैत्य शब्द का अर्थ ज्ञान भी होसक्ता है, मूर्ति अथवा प्रतिमा नहीं होसक्ता ॥
मन्त्री-यह आपका कथन भी सर्व प्रकार से मिथ्या है क्योंकि सूत्रों में ज्ञान को किसी स्थान में भी चैत्य नहीं कहा है । श्रीनन्दीजी सूत्र में तथा निस २ सूत्र में ज्ञान का वर्णन है वहां सर्वस्थानों में ज्ञान अर्थ वाचक "नाण" शब्द लिखा है। और सूत्रों में जिस २ स्थानों में ज्ञानि मुनि महाराज का वर्णन है वहां पर "मईनाणी""सुअनाणी" "ओहिनाणी" 'मनपजवनाणी" "केवल नाणी” ऐसे तो कहा है। परन्तु "मइचैत्यी सुअचैत्यी" आदि २ किसी स्थान में भी नहीं कहा है, और जिस २ स्थान में भगवन्त को और साधु को "अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान,परम अवधिज्ञान," और "केवलज्ञान” उत्पन्न होने का वर्णन है वहां पर ज्ञान उत्पन्न हुआ, ऐसे तो कहा है, परन्तु “अवधिचैत्य" "मनः पर्यवचैत्य" और "केवलचैत्य" आदि ऐमा किसी स्थान में
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