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( ३१ ) पक्षपात छोड़ो और विद्या ग्रहण करो फिर आपको अच्छी तरह से ज्ञान होजाएगा कि मूर्तिपूजा के करने से कोई प्राणी भी शेष नहीं है। जो लोग कहते हैं कि हम मूर्तिपूजा को नहीं मानते वे लोग केवल मिथ्या बातें बनाने वाले हैं ॥
ढूंढिया भाई निरुत्तर होकर शान्त होगया। तदनन्तर मन्त्रीजी मौलवी साहिब की तरफ ध्यान देने लगे ॥
मन्त्री-क्यों जी मौलवी साहिब ! आप भी मूर्ति को नहीं मानते ?
मौलवी-अपराध क्षमा कीजिये, आपको कुछ भी समझ नहीं, ऐसे ही मन्त्री पदवी मिल गई, आप इस बात को नहीं जानते कि हमारा मत मूर्तिपूजक नहीं है । यह बात तो प्रसक्ष स्पष्ट है कि हम लोग हिन्दुजातिवत् मूर्तिपूजा नहीं करते । क्या पत्थर भी कभी खुदा होसक्ता है ? और कोई बुद्धिमान जड़ में परमात्मा की स्थापना कर सक्ता है ? जो आप हमारे से ऐसी बातें पूछते हैं । __ मन्त्री -मौलवी साहिब ! इतना न घबराइये, तनक धैर्य से मुंनिए, हमारे पास यह पत्र का खण्ड है इस पर खुदा लिखा है क्या आप इस पत्रखण्ड पर अपना पाद स्थापित कर सक्ते हैं।
मौलबी-रक्तमय आंखे करके कहने लगे, बड़े ही शोक की बात है कि आप ऐसे निर्भय होकर बुद्धि के प्रतिकूल कठोर अक्षर क्यों कहते हैं । क्या आपको परमात्मा का भय नहीं है, और मृत्युका भय नहीं है ? आप मन्त्री पद को ग्रहण
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