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( २८ ) इस स्त्री के मृत तथा जड़ शरीर को देखकर पृथक् २ भावना के वा से पाप पुण्य का बन्धन किया। इस दृष्टान्त से सिद्ध होता है कि पाप पुण्यका फल केवल अपनी आन्तरिक भावना से ही मिलता है। भगवान् वीतराग तो न किसी को सुखी और न किसी को दुःखी करते हैं और न किसी को पुण्य और न किसी को पाप देते हैं। भगवान तो वीतराग ही हैं। किसी वस्तु को देखकर जो भाव उत्पन्न होता है, वह वस्तु तो उस भाव के उत्पन्न होने में एक निमित्त कारण है ऐसे ही भगवान की मूर्ति भी निमित्त कारण है, वस्तुतः तारने वाली तो हमारी आन्तरिक भावना ही है परन्तु निमित्त के विना भावना नहीं आसक्ती, इसलिये भगवान् वीतराग की मूर्ति भी बड़ा भारी निमित्त कारण है जिस किसी को जैसा निमित्त प्राप्त होता है उसको वैसे ही भाव प्रगट होजाते हैं।
मूर्तिपूजक तो शुभभाव आने से पुण्य उत्पन्न कर लेते हैं और मूर्तिनिन्दक भगवान वीतराग की मूर्ति को देखकर भ्रकुटी को चढ़ाकर दुष्टभाव हृदय में लाने से पाप उत्पन्न कर लेते हैं अब आप तनक सांसारिक व्यापार की भोर भी दृष्टि करें, कि वह भी मूर्ति विना कदाचित नहीं चलसक्ता ॥
दंदिया-यह बात भी दृष्टान्त के साथ समझाएं, क्योंकि दृष्टान्त से बात हृदय में आरूढ़ होजाती है ।
मन्त्री-जब किसी मकान को नीलाम या कुड़क कराना हो या किसी गृह आदि पर दावा करना हो तो उसका चित्र बनाकर न्यायालय में देना पड़ता है, क्या न्यायालय में वृत्तान्त
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