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ऊपर और सुधर्मदेवलोक में और सिद्धायतन में समीप ही शाश्वती जिनप्रतिमा थी तो जिस समय शकेन्द्र ने चमरेन्द्र पर वज्रपात किया था उस समय वह जिनप्रतिमा की धारण क्यों न गया ? और श्रीमहावीर स्वामी की शरण क्यों गया ?
मन्त्री-यह भी आपकी चालाकी केवल भोले लोगों को ही धोखा देने के लिये है , परन्तु दत्तचित्त होकर मुनिए । इसका उत्तर प्रत्यक्ष है कि जिस किसी की जो शरण लेकर जाता है और फिर जब वह आता है तो उसी के समीप ही आता है । चमरेन्द्र श्रीमहावीर स्वामी की शरण लेकर गया था, जब शक्रेन्द्र ने इस पर वज्रपात किया तो चमरेन्द्र श्रीमहावीरजी की शरण ही आया, यदि आपका ऐसा ख्याल होवे कि मार्ग में समीप ही शाश्वती प्रतिमा और सिद्धायतन थे, चमरेन्द्र इनके समीप क्यों न गया ? सो यह ख्याल भी केवल आपकी अज्ञानता ही है, क्या मार्ग में श्रीसिमन्दरस्वामी और दूसरे बिहरमान जिन विद्यमान नहीं थे ? उनकी कारण चमरेन्द्र क्यों न गया? फिर तो आपकी मति के अनुसार बिहरमान तीर्थङ्कर शरण लेने के योग्य न हुए, वाह जी ! वाह ! आपकी ऐसी बुद्धि पर शोक है ॥
हँढिया-वन आदि को "चैत्य” कहा जासक्ता है ।
मन्त्री-जिस वन में यक्ष आदि का मन्दिर होता है उस बन को सूत्रों में "चैत्य" कहा है, दूसरे किसी वन को भी सूत्रों में "चैत्य" नहीं कहा है इसलिये आपका यह कथन भी मिथ्या है
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