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में आवागमन नहीं होवे अर्थात् मोक्ष प्राप्त होवे,इसी सूत्रमें लिखा है कि प्रभावती श्राविका उदायन राजा की रानी ने जिनमन्दिर बनवाया । और श्रीजिनप्रतिमा के आगे नाटक किया, इसी सूत्र में लिखा है कि श्रेणिक राजा प्रतिदिन सोने के यव बनवाकर श्रीजिनप्रतिमा के आगे साथिया किया करता था ।
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द्वादश प्रमाण । श्री प्रथम अनुयोग में अनेक श्रावक और श्राविकाओं ने जिनमन्दिर बनवाये, और श्रीजिनप्रतिमा पूजी ऐसा वृत्तान्त है।
दंढिया-प्रमाण तो महोदयजी आपने उत्तम २ दिये, परन्तु चैत्य शब्द पर सन्देह है, क्योंकि इसका अर्थ मूर्ति वा भगवान की प्रतिमा नहीं होसक्ता ॥
मन्त्री-तो और क्या होसक्ता है ? ॥ ढूंढिया-इस शब्द का अर्थ साधु होता है।
मन्त्री-किसी कोश में भी “चैत्य" शाब्द का अर्थ साधु नहीं किया है, कोश में तो "चैत्यं जिनौकस्तविम्ब चैत्यं जिनसभातरुः" अथवा जिनमन्दिर और श्रीजिनप्रतिमा को चैत्य कहा है, और चौतराबन्ध वृक्ष का नाम चैत्य कहा है, आपने जो चैत्य शब्द का अर्थ साधु किया है, वह किसी प्रकार से भी ठीक नहीं है क्योंकि सूत्रों में तो किसी स्थान पर भी साधु शन्द को चैत्य कहकर नहीं बुलाया है, सूत्रों में तो
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