Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 132
________________ मिरिमुनिसुव्वयजिणिदचरियं रविमंडल-समतेयं विरयंतं अंधयारविद्धंसं । जपतो गिन्ह इमं होही एक्कं पि तुह एयं ।।३१६७।। अइसयसोहा हेउं एयस्स पहावओ असेसं पि । सेयं संपज्जिस्सइ अन्नं पि न संसओ एत्थ ।।३१६८।। तम्मि नियहत्थपत्ते पडिबुद्धा सा कहेइ गंतूण । पासम्मि भत्तुणो वज्जनाहिणो चक्कवट्टिस्स ॥३१६९।। साहेइ सो वि तुह देविनंदणो को वि सुंदरो होही। जो वड्ढंतो कमसो मं च तुमं निव्वयं काही ॥३१७०॥ जम्हा कल्लाणपरंपराए अच्चंतकारणं एसो। देवि सुमिणो मणुन्नो तुमए निज्झाइओ अज्ज ।।३१७१।। एवं चिय' होउ इमं देवगुरूणं पसायओ देव । इय पभणंती देवी बंधइ वत्थंचले गंठि ।।३१७२।। सुमिणं पसंसिऊणं पुणो पुणो वज्जनाहिणा रन्ना । देवी विसज्जिया वासमंदिरं निययमणुपत्ता ॥३१७३।। चितंती पुणरुत्तं सुमिणत्थं चक्कवट्टिणा कहियं । देवी सुहावई निय मणम्मि गरुयं वहइ हरिसं ॥३१७४।। अह सो कुबेरदत्तो देवो चविउं सणंकुमाराउ । कप्पाओ उप्पन्नो तोसे देवीए गब्भम्मि ॥३१७५॥ अह सा सुहेण गम्भं वहमाणी पुन्नडोहलादेवी । पडिपुन्नेसु दिणेसुं पसवइ पुत्तं कमलनेत्तं ।।३१७६ ।। जाए व वज्जनाहीराया वद्धाविओ समागंतुं । कलहंसी नामाए दासीए पुत्तजम्मेण ॥३१७७।। पीऊसवरिससरिसं सवणेसु सुहं समप्पयंतीए । नोसेसम्मि वि देहे उप्पाइयबहलपुलयाए ॥३१७८।। आसत्तमकुलदालिद्ददंतिनिद्दलणपच्चलं तीसे । वियरइ दाणं पंचाणणं व सनिवो तओ झत्ति ।।३१७९।। कारइ वद्धावणयं गरुयविभूईए सयलनयरम्मि । दहदियहाइं नरिंदो बारसमे वासरे पत्ते ॥३१७०।। पुत्तस्स वज्जकुंडलनामं सुमिणाणुसारओ कुणइ । अह सो सुहेण वड्ढइ पंचहि धाईहिं परियरिओ ॥३१८१।। तो अट्ठमम्मि वासे पासम्मि समप्पिओ कलागुरुणो। बावत्तरि पि गिन्हइ कलाओ लेहाइपयाओ लहुं ।।३१८२।। अह सो जोव्वणपत्तो अणेय राईसराण तणएहिं । सेविज्जतो उज्जाणकाणणाईसु परिभमइ ॥३१८३।। जणणीए जणयस्स य इयरजणाणं च नयणपहपत्तो। अमयरसेण व तेसि सिंचंतो सव्वगत्ताई ॥३१८४॥ जणयाणं समणोवासयाण संगेण तस्स संजाया। जिणधम्मे पडिवत्ती पुत्वभवब्भासओ य तहा ।।३१८५॥ पुएइ जिणप्पडिम घरम्मि चेइयहरम्मि तह गंतुं । वंदेइ जइ जणं सुणइ देसणं परमसद्धाए ॥३१८६।। कामरइ पमुहाणं रूयवईणं नरिंदकन्नाणं । पंचसए परिणावइ तं जणओ वज्जनाहिनिवो । ३१८७।। तस्स कए पासायं कारइ सिरिवज्जनाहिचक्कबई। पंचहि पासायसएहि संजुयं तुंगरमणिज्ज ।।३१८८।। तत्थ ठिओ सो कुमरो ताहि समं अप्पणो पणइणीहि । भुंजइ विउले भोए पुवज्जियसुक्यसंजणिए ।।३१८९।। अहं वज्जनाहिचक्की ठवेइ तं ' वज्जकुंडलकुमारं । जुवरायत्ते समयंतरम्मि दाऊण बहुदेसं ॥३१९०।। मइसागरो त्ति मंती चिट्ठइ सिरिवज्जनाहिचक्किस्स। मंतिस्स तस्स तणओ नामेणं मइनिहाणो त्ति ॥३१९१॥ सो वज्जकुंडलेणं नियमंडलचितगो समाइट्ठो । इट्टवयंसो विस्संभठाणमाबालकालाओ ॥३१९२।। अन्नसमयम्मि सिरिचक्कवहितणयस्स सभवणगयस्स । पत्तोदारम्मि नरिंदनंदणो वीरसेणो त्ति ।३१९३॥ आपुच्छिऊण कुमरं पडिहारेणं पवेसिओ मज्झे । एसो दूराओ च्चिय पणओ पाएसु कुमरस्स ।।३१९४।। पीए दिनहत्थो कुमरेणं दिद्विदंसियम्मि तओ। सो आसणे निसन्नो पुट्ठो य पओयणं कहइ ।।३१९५।। कुमरपयसेवणं चियं कुमरो पडिहारमाइसइ तत्तो । कारेयव्वो सेवं मज्झ तए एस निच्चं पि ॥३१९६।। कुमरेण पुणो पुट्ठो देसाउ कुओ समागओ तं सि । तो भणइ वीरसेणो एगंतो विन्नवेयव्वं ।।३१९७।। अह चक्रवट्टिपासे संवहिउं वज्जकुंडलो कुमरो । सेवाकज्जम्मि गओ पुणो नियत्तो मुहुत्तंते ।।३१९८।। रायसुयवीरसेणो रायउले वज्जकुंडलेण समं । पगओ समागओ तह कुमरेण विसज्जिओ अह सो॥३१९९।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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