Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad
View full book text ________________
२५८
सिरिमुनिसुव्वयजिनबण्णणं सिग्धं पवेसिया सा तिक्खा असिधेणुय व्व मह हियए। वयणमुप्पायंती सव्वसरीरम्मि वणमाला ।।८३१२।। तयणंतरं पि मयणो निरूविओ तेण पहरिउ मज्झ । तेण वि नियबाणेहि एयावत्थं अहं नीओ।'८३१३।। अह मंती भणइ निवं देव! वियाणामि तं अहं बालं। वीरयकुविधरिणी सया वि नामेण वणमालं ॥८३१४।। मा कुणउ कं पि खेयं देवो एयम्मि वइयरे तम्हा । तह कह वि करिस्समहं जह सा देवस्स वसमेइ ।।८३१५।। तो आह सुमुहनिवई मा मा जंपेह एरिसं सचिव ! । तुह पुच्छंतस्स मए जहट्ठिओ साहिओ एसो ॥८३१६।। नियचित्तस्स विगप्पो काउं इच्छामि न उण काएण । जम्हा मणम्मि वि इमं अचितणिज्ज कुले अम्ह।।८३१७।। जइ वि हु दिव्ववसेण मणोवियारो इमो समुप्पन्नो । तह वि न कुले कलंक नियम्मि आणेमि ससिविमले।८३१८। जइ वि कुविओ विही मे हरिस्सए तह वि जीवियं चेव । इह परलोयविरुद्धं में कारेउ न सो सक्को ।।८३१९।। विनवइ तओ मंती देवो जाणेइ नीइसत्थाई । सव्वपुरिसत्थमूलं तत्थ वि रक्खाविओ अप्पा ।।८३२०।। आह तओ सुमुहनिवो सेयं मरणं पि विमलसीलस्स । मइलियसीलस्स पुणो न सुहं चिरजीवियव्वं पि ।। जइ ता तुम मम हिओ तो मा मह देसु एयमुवएसं । अज्जेऊणं पावं जेण अहं दुग्गइं जामि ।।८३२२।। मइसागरो पयंपइ न भायणं तमिह जस्स न पिहाणं । पावं पि तं न भुवणे पायच्छित्तं न जस्सत्थि ।।८३२३॥ ता अत्ताणमियाणिं कहमवि विसमाउहाउ रक्खेउ। पावस्स तस्स पच्छा पायच्छित्तं चरेज्जासि ।।८३२४।। आह तओ नरनाहो पायच्छित्तेण पावकम्मस्स । होज्ज विणासो अयसस्स मज्जणं कह विहेयव्वं ।।८३२५।। मतिसागरेण भणियं तहा करिस्सामि देव ! जह अन्नो । को वि न याणइ एयं तुज्झ रहस्सं नयरमज्झे।।८३२६।। किं च निरवच्चयाणं जइ तुम्ह हवेज्ज कह वि परलोए । गमणमियाणि एएण वइयरेणं तओ देव ! ॥८३२७।। रज्ज रट्ट च पयाउ धम्मठाणाई पुवपुरिसाणं । एगसमएण सव्वं पावेज्ज विणासमवियप्प ।।८३२८।। इय जंपियम्मि राया न पयच्छइ जाव कि पि पडिवयणं । तो मंतिणा पभणियं गम्मउ सिग्घ पि देव! इओ।८३२९। नयरीमज्झम्मि नियम्मि मंदिरे ताव संपय तत्तो । कालोचियं भविस्सइ जं कि पि तयं करिस्सामि ।।८३३०।। सिबियं आरुहिऊणं उज्जाणवणाओ अह नराहिवई । नियपरिवारसमेओ पविसइ कोसंबिनयरीए ।।८३३१।। गंतुणं पासाए विसज्जिऊणं च सव्वपरिवारं। वासहरे पविसेउं सयणिज्जे ठाइ तं बालं ।।८३३२।। अणवरयं झायंतो एगग्गमणो सुदीहनीसासे । उण्हुन्हे विमुयंतो मणं नियत्तेउमतरतो ।।८३३३।। मतिसागरसचिवेणं एस पघोसो पयासिओ बाहिं। जह नरवइणों सीसं बाहइ चिरचक्खु दोसेण ।।८३३४।। सयमागंतूण गिहे हक्कारावेइ पुरिसपासाओ। अत्तेइयाहिहाणं परिवायलिगिणि निउणं ।।८३३५।। पेसेइ तओं एवं वणमालाए वसीकरणहेउं । गंतूण तग्गिहे सा तीए सह दंसणं कुणइ ।।८३३६।। कयसमुचियपडिवत्ती जंपइ आसणपरिग्गहं काउं । पुत्ति ! अहं तुह गेहे निच्चं पि उवेमि पाएण ॥८३३७।। कितु वियसंतवयणा दीसंती अन्नया सया वि तुमं । अज्ज पुण मउलियमुही कह दीससि सुन्नहियया य ।। अन्नं च सव्वकालं नियसुह-दुक्खं तुमं पुरो मज्झ । आसि पुरा साहेती ता सुयणु ! कहेसु इन्हि पि ।।८३३९।। जं कि पि तुज्झ बाहइ मज्झे देहस्स तयणु वणमाला। जंपइ अज्जे! बाला का वि जहा मंडलं ससिणो ।। गयणंगणाओ गहिउं इच्छइ जह वा खरी वरतुरंगं । सीहकिसोरं व सिवा कलहंसं वायसवहु व्व ।।८३४१।। मयणत्ता परिभोत्तुं वंछेइ अहं पि अज्ज तह मूढा । दुल्लहजणसंजोयं देव्योवहया अहिलसामि ॥८३४२।। अज्ज वि पुवुत्ताणं संजोओ होइ कह वि दिव्ववसा। जं पुण पत्थेमि अहं सुमिणे वि हु दुल्लहो मज्झ ।। तेण समं संजोगो तेणहं मयणदाहजरगहिया । न लहामि खणं पि रई चिट्ठामि विमुक्कजीयासा ॥८३४४।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376