Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 293
________________ २६० हरिवंसवण्णणं सा वि सवियारलोयणमवलोयंती निरंतरं बाला । दिट्ठा निवेण पम्हुट्ठसव्वनियमणविवेएण ।।७३७७।। ताव च्चिय विबुहाण वि मणम्मि निम्मलविवेयदीवस्स । विप्फुरणं संजायइ झडप्पए अज्ज वि न जाव।।८३७८।। तं तरुणिलोललोयणविक्खेवसुदीहरंचलसमीरो। अह नाउं सचिवो निवदिट्ठीभावं अवक्कतो ॥८३७९।। नाऊण साणुरायं राया तं कारिऊण उवयारं । अद्धासणे निवेसइ रमणमईए विगयसको ।।८३८०।। एत्तो च्चिय वारिज्जइ गरुयपयत्तेण सव्वसत्थेसु । मायाए भइणीए दुहियाए वा सहेगंतो ।।८३८१।। जम्हा इंदियगामो सुदुद्धरो होइ मत्तहत्थि व्व । भंजतो सीलवणं गुरूवएसंकुसअभीओ ।।८३८२।। समरे सुतिक्खखग्गाभिघायसंघायमवि महासुहडा । विसहंति सुलीलाए न मुयंति मणं पि धीरत्तं ।।८३८३।। सविलासजुवइलीलाकडक्खविक्खेवतिक्खबाणाणं । पुण वाओ वि विलग्गो तेसि धीरत्तणं हरइ ।।८३८४।। अह निय पासनिसन्नं सज्झसपवियंभमाणउक्कंप । कलिऊणं तं बालं सज्झसपरिवज्जिओ राया ।।८३८५।। वरमज्जपाणविहिणा हरिऊणं सज्झसं निरवसेसं । रमइ अवगूहिऊणं सिक्कारुक्कंपिरथणोरु ॥८३८६।। परिभुत्तरइसुहं पि हु विसज्जिउं तं न इच्छए बालं । सुमुहनिवो तहसणपइसमयपवड्ढियाणंगो ।।८३८७।। अवरोहे च्चिय धारइ तीए सह निबिडनेहनिरयाए । एगन्तरइपसत्तो गयं पि कालं न याणेइ ॥८३८८।। अह वीरओ कुविंदो आगच्छइ जाव मंदिरे नियए । ताव न पेच्छइ भज्जं वणमालं तत्थ ललमाणं ।।८३८९।। अन्नेसिउं पयत्तो तत्तो संभंतमाणसो एसो । अंतोगिहस्स गंतुं उवरिं च बहिं च सद्दन्तो ।।८३९०।। वणमाले ! वणमाले ! कत्थ गया? किं करेसि परिहासं? । चक्कं व भमइ रयणीए विरहिओ चक्कवाओ व्व एत्तियदिणाणि दइए! कयावि कोवो तए कओ नेय । मझुवरि चंदवयणे! सया वि अणुरत्तचित्तस्स।।८३९२।। सुमरामि अहं मुद्धे ! न कि पि तुह विप्पियं कयं इन्हि। जइ पुण तुमं वियाणसि तो खमसु ममेक्कमवराह।।८३९३। जइ वि तुम अइकुविया न देसि दीणस्स दंसणं मज्झ । करुणं काऊणं तहा वि सद्दमेक्क सुणावेसु ।।८३९४।। हिययं फुडिऊण जहा न जाइ मम जीवियं हयासस्स । इच्चाइ पलवमाणो जाओ उम्मत्तओ सहसा ।।८३९५।। सविहवसारं पि घरं चइऊण विणिग्गओ नयरिमज्झे । तियचच्चरेसु वियरइ घरमढदेवउलवावीसु ।।८३९६।। आरामेसु पवासु य सहासु सरिसरवरेसु रायपहे । सव्वंगमलविलित्तो खरंटिओ खेलमाईहिं ।।८३९७।। विलुलतमलजडीकयकेसकलावो गलतनयणजुओ । फुडियकरचरणजुयलो दीहरसंजायनहरोमो ।।८३९८।। जरचीवरखंडनियंसणो य घणरेणुगुंडियसरीरो । करकलियकप्परो भिक्खमग्गिरो वियरइ जहिच्छं ।।८३९९।। कयपरिवेढो डिभगसएहिं कलयलरवं कुणतेहिं । कीलाए वेलवंतेहि एहि दंसेमि वणमालं ।।८४००।। इय भणिऊणं नेऊण कहियठाणम्मि तं भणंति तओ। अम्हेहि आसि दिट्ठा एत्थ पएसम्मि खणमेक्कं ।।८४०१॥ इन्हि तु गया कत्थ वि न याणिमो जंपए तओ अन्नो । एक्केण मज्झ कहिया सा चिट्ठइ अमुगठाणम्मि ।।८४०२।। तयभिमुहो तो धावइ तत्थ वि तं जाव पेच्छए नेय । तो पलवइ वणमालागुणे सरंतो बहुपयारं ।।८४०३।। पुच्छंतो पइगेहं वणमाला अत्थि एत्थं कत्थ वि य? । सपत्ता मह रुट्ठा जह दिट्ठा कह वि ता कहह ॥८४०४।। तं सि पिए! जंपंती दइय ! तुमं पाणवल्लहो मज्झ । ता किं न देसि दसणमिण्हि मह विलवमाणस्स ।।८४०५।। जइ आसि अहं दइए! पाणेहितो वि वल्लहो तुज्झ । निक्कारणं पि ता कि इन्हिमउन्नो तए चत्तो ।।८४०६।। अहवा वि वल्लहो च्चिय तुज्झ अहं तेण मह मणं तुमए। नीयं सहऽप्पण च्चिय नियमणसाहारणनिमित।।८४०७। अहवा न मज्झ रुट्ठा तं सि पिए! किंतु रूवलुद्धेणं । देवेण दाणवेण व खयरेण व अवहडा नूणं ।।८४०८।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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