Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 297
________________ २६४ हरिवंसबण्णणं अह पुहइवई रज्जे अहिसित्तो सव्वरायलोएण । अखलियपयावपसरो जाओ जसभरियभुवणयलो।।८५०५।। सागरसीमाए वसुमईए सामी महानिवो जाओ। कालेण समुप्पन्नो महागिरी नाम तस्स सुओ ।।८५०६।। अहिसिचिऊण रज्जे एयं अह पुहइवई महाराओ। गिन्हेऊणं दिक्खं काऊण तवं दिवं पत्तो ।।८५०७।। काऊण एगछत्तं रज्ज पसरंतनिम्मलजसोहो । राया महागिरी वि हु हिमगिरिनामम्मि पुत्तम्मि ।।८५०८।। रज्जं निवेसिऊण दिक्खं गहिऊण कम्मसंघायं । सव्वं पि खवेऊणं अक्खयसोक्खं गओ मोक्खं ।।८५०९।। राया वि हिमगिरी हिमगिरि व धवलं जसं महियलम्मि। वित्थारिऊण सव्वत्थ वसुगिरि नियसुयं तत्तो।।८५१०।। ठविऊणं नियरज्जे विमलं पडिवज्जिऊण पव्वज्ज । निद्वविऊणं कम्म समग्गमवि सिवपयं पत्तो ॥८५११।। नयविक्कमसंपन्नं रज्जं परिवालिङ वसुगिरी वि । गिरिनामयम्मि पुत्ते आरोवेऊण रज्जभरं ।।८५१२।। गहिऊण वयं खविऊण कम्मनिचयं गओ पयं परमं । गिरिनरवई वि पुत्तं मित्तगिरि ठाविउं रज्जे ॥८५१३।। जिणवइमयप्पभावणमणहं काऊण कयतवविसेसो । आउक्खए महिड्ढियदेवो वेमाणिओ जाओ ॥८५१४।। एएणऽणुक्कमेणं हरिवंसे सव्वजयपसिद्धम्मि । कालेण असंखेज्जा संजाया वसुमतीवइणो ॥८५१५।।। नयविक्कमचायाईहिं निम्मलेहि गुणेहि परिकलिया। नियनियपुत्तेसु निवेसिऊण रज्जस्स पब्भारं ॥८५१६।। दिक्खं गहिऊण जिणिददेसियं के वि खवियकम्मंसा । मोक्खम्मि गया केइ वि जाया वेमाणिया देवा ॥८५१७।। एवं समइक्कतेसु एत्थ पुरिसंतरेसु बहुएमु । मगहाभिहाणदेसे कुसग्गनामम्मि वरनयरे ॥८५१८।। ओरोहचरियरेहंतगरुयपायारविहियपरिवेढे । सुनिबिडकवाडसंपुडदुपवेसपओलिदारम्मि ॥८५१९।। सुविसिट्ठवट्टसंठियकविसीसयसेणिसोहमाणम्मि । विउलट्टालयमालामंडियपायारसिहरम्मि ॥८५२०।। चक्कमुसंढिगयाहि सयग्धिवग्घीहिं परभयकरम्मि। छेयायरियविणिम्मियदढफलि (ह) महिंदकीलम्मि।।८५२१।। उव्विद्धविउलगंभीरखायवलएण सव्वओ कलिए। आरामुज्जाणागडतलायवप्पिणगुणाणुगए ।।८५२२।। हलसयसहस्स संकट्ठलट्ठपन्नत्तसेउसीमम्मि । उच्छुजवसालिकलिए गोमहिसगवेलगप्पउरे ।।८५२३।। परचक्कागमसंभवभयपरिमुक्कम्मि रिद्धिसुसमिद्धे । सिंघाडगतिगचच्चरचउक्कपरिभत्तिसुहयम्मि।।८५२४।। पमुइाजणजाणवए अणेगमाणवगणेहि संकिन्ने । वरतुरयमत्तकुंजररहपहगररेहिरपहम्मि ॥८५२५।। पायारगूढगोउरतोरणरायंतभवणदेवउले । देवउलसिहरधुव्वंतधवलधयसुहयगयणयले ॥८५२६।। पणकामिणिपाडयसंचरंतकामियणरइयवरगेए । मुट्ठिगनडनट्टगजल्लमल्लवलंबगाणुगए ॥८५२७।। आइक्खगलासगलंखमंखतूणइलकहगपवगेहिं । तालायरेहिं तह तुंबवीणिएहि च संकिन्ने ॥८५२८।। उक्कोडियगायागंठिभेयभडतक्करेहि परिमुक्के । तह खंडरक्खरहिए खेमे निरुवद्दवसुभिक्खे ।।८५२९।। वीसत्थसुहावासे अणेगकोडीकुडुंबियाइन्ने । निच्चूसवसयकलिए परोपरं कलहपरिमुक्के ।।८५३०।। जत्थ फलिहुज्जलोवलविणिम्मियाइं जिणिदभवणाई । सिहरट्ठियकंचणकलसकतिसंकमणकविलाई ।८५३१।। कीलासेलनिमित्तं नरवइणो पेसियाई सुरवइणा । सिहराई सुमेरुस्स व टाणट्ठाणेसु रेहंति युग्मं ।।८५३२।। जिणहरसिहरेसु रणंतकिकिणीमुहलधयवडग्गाइं । उड्ढुल्लसियाई कहंति व जिणभत्ताण उड्ढगई ।।८५३३।। अहवा कि उवरिगयं चिट्ठसि ओयरहि हेटुओ झत्ति । जह अट्ठ वि दिसिभाला तुम्हं सुरनरवरपुराण ।।८५३४।। दोन्हं पि सुंदरासुंदरत्तणं सुनिउणं वियारंति । एवं सग्गनिवासीण पुरवरं अक्खिवंति व्व ।।८५३५।। कइया वि पवणवसओ अभितरसम्मुहं चलंताई । तुरियं आगंतूणं एवं पासह महानयरं ।।८५३६।। जइ कह वि अस्थि कत्थ वि पलोइयं एरिसं महियलम्मि। तुन्भेहि भमतेहि इय पहियजणं भणंति व्व ॥८५३७।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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