Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 315
________________ २८२ सिरिमुनिसुव्वयजिनजम्मवण्णणं तेल्लसमुग्गाणं सरिसवयसमुग्गाण तालियंटाण । पत्तेयं पत्तेयं अट्ठसहस्सं कडच्छणं ॥९०८७।। वेउव्वियं च साभावियं च तं गिन्हिऊण सब्बं पि। खीरसमुद्दे गंतण खीरसलिलं पगिन्हंति ॥९०८८।। पउमाइं उप्पलाइं जाव य सयवत्तसहसवत्ताई । गिण्हंति एवमेव य पुक्खरवरसागराओ वि ॥९०८९।। भरहेरवयाईण वि मागहमाईण सव्वतित्थाण । गंगाइमहासरियाण गिहिउं मट्टियं उदयं ।।९०९०।। चुल्ल हिमवंतपभिइयसमग्गवासहरपव्वएहितो। सव्वे पुप्फे गंधे मल्ले सव्वोसहीओ य ॥९०९१।। सिद्धत्थए य गहिउं पउमद्दहपभिइ सव्वहरयाण । सलिलुप्पलमट्टियमाइयं च सव्वं गहेऊण ।।९०९२।। एवं च सव्वकुलसेलवट्टवेयढ्डचक्किविजएसु । वक्खारपव्वएसुं अंतरसरियासु सव्वासु ॥९०९३।। उत्तरकुरुमंदरभद्दसालनंदणवणाइएसं च । गिण्हंति जाव सिद्धत्थए य सरसं च गोसीसं ॥९०९४।। सिरिखंड तह दिव्वं सुमणसदामं सुगंधवरगंधं । गिण्हेर्ड एगयओ मिलंति तो जंति पहुपासे ॥९०९५।। अह अच्चुयदेविंदो सामाणियपमु हसव्वसुरसहिओ। साहावियवेउव्वियकलसेहिं तेहिं सव्वेहिं ।।९०९६।। वरपउमपिहाणेहिं सुगंधिवरवारिपूरिएहि च । चंदणकयचच्चेहिं ताए सव्वाए इढ्डीए ॥९०९७।। सव्वाउज्जाणमहानिनायनिवहेण सव्वजत्तेण । अहिसिंचइ तित्थयरं मया महयाऽहिसेएण ॥९०९८।। अह तम्मि अइमहत्थे जिणाहिसेयम्मि वट्टमाणम्मि। इंदाईया देवा वरचामरछत्तकयहत्था ।।९०९९।। धूवकडच्छ्यवरकलसपुप्फगंधाइधारियकरग्गा । हट्ठपहट्ठा करकलियकुलिससूलाइणो पुरओ ॥९१००।। चिट्ठति पंजलिउडा आसियसम्मज्जिओवलित्तं च । पकरेंति केइ देवा जाव य वरगंधवट्टिसमं ।।९००१।। वासंति केइ देवा हिरन्नवासं सुवन्नवासं च । आहरणरयणवासं तह फलपुप्फाइवासं च ॥९१०२।। वरगंधमल्लवासं केइ वि वासंति चुन्नवासं च । वायंति केइ चउविहमाउज्जं घणतयं वितयं ।।९१०३।। सुसिरं च तहा केइ वि देवा गायंति चउविहं गेयं । उक्खित्तं च पयत्तं मंदं रोइंदियं चेव ।।९१०४।। नच्चंति केइ देवा चउव्विहं नट्टमंचियं चड़यं । आरभडं च भसोलं चउन्विहं अभिणयं के वि ।।९१०५।। अभिणेति तियसनिवहादितिय पाडियं तियं चेव। सामंतोवाइययं च लोगमज्झावसाणिययं ।।९१०६।। बत्तीसविहं दिव्वं नट्टविहिं के वि दंसयंति सुर।। उप्पयनिवयपवत्तं संकुइयपस रियं नाम ।।९१०७।। संभंतं नाम तहा नट्टविहिं दिव्वममरसंघाया। उवदंसयंति केइ वि केइ वि पीणंति तियसगणा ।।९१०८।। एवं बुक्कारेंति य लासेंति य तंडवंति वगंति । अप्फोडेंति य केइ वि सीहनिनायं च कुन्वति ।।९१०९।। सव्वाइं वि के वि कुणंति के वि हयहेसियाई कुव्वंति । केइ वि मयमत्तगय व्व गुलुगुलायंति सुरनिवहा ।।९११०।। रहघणघणाइयं के वि सुरगणा केवि तिन्नि वि कुणंति । उच्छालेंति य केइ वि पच्छोलेंति य सुरा के वि ।।९१११।। अच्छिदंति य तिवई केइ वि तह पायदद्दरं देति । भूमिचवेडं दलयंति के वि रावेंति गुरुसरं ।।९११२।। एवं संजोगा वि हु भणियन्वा के वि तह सुरसमूहा। हक्कारेंति य पोक्कारेंति य तह ओवयंतेगे ।।९११३।। तह उप्पयंति एगे एगे य परिप्पवंति य जलंति । केइ वि तवंति केइ वि गज्जति य विज्जुयायंति ।।९११४।। वासंति के वि देवा देवुक्कलियं करेंति तह के वि । देवकहक्कहमेगे तह देवतुहत्तुहं के वि ।।९११५।। रूवाइं विउव्वित्ता वि गियाइं के वि तह पणच्चंति । एमाइ विभासेज्जा जहेव विजयस्स देवस्स ।।९११६।। जा सव्वओ समंता आहावेति य तहा पहावेति । एवं अच्चुयइंदो परिवारसमनिओ सामि ।।९११७।। अभिसिचित्ता करयलपरिग्गिहीयं सिरम्मि काऊण । अंजलिबद्धं वदावेइ जएणं च विजएण ।।९११८।। इट्ठाहिं य कंताहिं य ताहि मणुन्नाहिं तह मणामाहिं । वग्गूहिं जाव जयजयसद्द हट्टो पउंजेइ ।।९११९।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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