Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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२९८
सिरिमुनिसुव्वयजिनवण्णणं पयईए दाणसद्धाअद्धासियमाणसो दयारसिओ। पयइविणीओ दक्खिन्नसंजुओ परुवयारी य ॥९५९१।। तस्स गिहे तम्मि दिणे जामाऊ आगओ सनयराओ। बहुपरिवारसमेओ पाहुणओ तेण सविसेसं ।।९५९२।। भोयणजायमणेयप्पयारमुवसाहियं सपरमन्नं। भोयणहेउं उववेसिओ य सो तत्थ जामाऊ ।।९५९३।। तत्तो परिवेसेउं पारद्धं तस्स जाव ताव पहू । संपत्तो तत्थ तओ तमेज्जमाणं पलोइत्ता ।।९५९४।। परियाणेत्ता य जहा सो एसो तिजयपणयपयकमलो । जुन्नतणं व पडग्गे लग्गं जेणुज्झियं रज्जं ॥९५९५।। अइकंतअणंतरवासरम्मि अंगीकयं महाघोरं । निस्संगत्तणमेयं दुक्करमियराण मणसा वि ॥९५९६।। उठेइ बंभदत्तो पहिट्ठहियओ इमं विचितंतो। धन्नो अहं चिय जए फलियं मज्झेव पुन्नेहि ।।९५९७।। पुव्वभवसंचिएहिं जस्स गिहंगणमिमेण जगगुरुणा । नियपयपडिबिंबेहिं पंकयपयरंकियं व कयं ।।९५९८।। एवं विचितिऊणं सघयमहुं पायसं गहेऊण । पडिलाभइ भुवणगुरुं पहरिसपुलइयसमग्गतणू ॥९५९९।। भयवं पि कप्पणिज्जं नाऊणं देसकालपरिसुद्धं । पज्जत्तं पडिगाहइ दोण्णि वि पाणी पसारेउं ॥९६००। भुंजइ अरत्तदुट्ठो अदिस्समाणो उ मंसचक्खूहिं । एत्यंतरम्मि जिणवरपारणगपहिट्ठहियएहिं ॥९६०१।। देवेहि नहंगणसंठिएहि उग्घोसियं अहो दाणं । उल्लसिरबहलपरिमलगंधोदगवाससंजुत्ता ।।९६०२।। विहिया वियसंतदसद्धवन्नवरसुरहिकुसुमवुट्ठी य । अद्ध (त्ते) रसकोडीसंखा खित्ता य वसुहारा ।।९६०३।। नहविवरं पूरंतो नवजलहरसद्दगहिरनिग्योसो। वित्थारिओ समंता सुइसुहओ दुंदुहिनिनाओ ।।९६०४।। इय सोऊणं सुव्वयनरनाहो तत्थ आगओ झत्ति । तं बंभदत्तनामं सम्माणइ गहवइं हिट्ठो ।।९६०५।। मिलिओ य पउरलोओ सयलो तेण वि पसंसिओ एसो। तह सलहियं च तेहिं सुपत्तदाणस्स माहप्पं ।।९६०६।। कयपारणगाणंतरमवकतो भुवणबंधवो तत्तो। सुव्वयनराहिवाई जणो वि नियठाणमणुपत्तो ।।९६०७॥ भयवं रायगिहाओ निग्गंतूणं बहिं जणवयम्मि । पंचसमिओ तिगुत्तो विहरइ छज्जीवहियनिरओ ।।९६०८।। जीवो इव अप्पडिहयगई निरालंबणो य गयणं व । अनिलो व्व निरासयओ संखो व्व निरंजणो तह य ।।९६०९।। चंदो व्व सोमलेसो तह तेयंसी सहस्सकिरणो व्व । सागर इव गंभीरो विहगो इव विप्पमुक्को य ।।९६१०।। सुरसेलो व्व अकंपो भारुंडविहंगमो व्व अपमत्तो। खग्गविसाणमिवेगो सारयसलिलं व सुद्धमणो ।।९६११।। वसहो व्व जायथामो मत्तमहाकुंजरो व्व सोंडीरो । सीहो इव दुद्धरिसो पुढवी इव सव्वफाससहो ।।९६१२।। सुहओं हुयासणो इव तवतेएणं अईवपजलंतो। सव्वत्थअपडिबद्धो विहरइ गामागराईसु ॥९६१३।। जियकोहमाणमायालोभो विजिइंदिओ जियपमाओ। अप्पाणं भावेतो तवेण तह संजमेणं च ।।९६१४।। इय विहरिऊण बाहि आगंतूणं पुणो वि रायगिहे । नीलगुहावणसंडे ठाइ अहे चम्मरुक्खस्स ।।९६१५।। तत्थ ठियस्स भगवओ आयातस्स छट्ठभत्तेण । पाणगरहिए विसुज्झमाणलेसस्स सविसेसं ।।९६१६।। एक्कारसमासेसुं समइक्कंतेसु पक्खसहिएसु । फग्गुणबहुलदुवालसिदिणम्मि पुव्वन्हसमयम्मि ।।९६१७।। सवणेणं संजोगं नक्खत्तेणं गए मयंकम्मि । सुक्कज्झाणस्स दुइज्जभेयमेगंतपवियक्कं ।।९६१८।। समइक्कंतस्स तओ अपावमाणस्स सुहुममणियट्टि । नाणावरणप्पमुहे घाइचउक्कम्मि खीणम्मि ।।९६१९।। निव्वाघायमणुत्तरमणंतमप्पडिहयं निरावरणं । अप्पडिवाइसमग्गं केवलनाणं समुप्पन्नं ।।९६२०।। अह सो भयवं अरहा सव्वण्णू केवली जिणो जाओ। मुत्ताण अमुत्ताण य सव्वेसिं चेव दव्वाणं ।।९६२१।। तीयपडुप्पन्नाणागए वि सव्वे गुणे य पज्जाए। जाणइ पासइ य तहा लोयालोयम्मि सयले वि ।।९६२२।। तो आसणकंपेणं सिरिमुणिसुव्वयजिणस्स उप्पन्नं । केवल नाणं नाऊण सुरगणा इंदपभिईया ।।९६२३॥
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