Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 363
________________ ३३० विष्णुकुमारमुनिकहा पंचमलयाए सत्त य उववासा अट्ठ नव य पण छक्कं। तव दिवसा पण सत्तरसयमिह पणवीस पारणया।।१०६२८॥ भद्दा य महाभद्दा तइया भद्दोत्तरा य तिन्नि वि य । तिरि उड्ढं कोणेसु य समसंखा सव्वओ भद्दा ॥१०६२९।। सव्वरसविगइवज्जियअलेवआयंबिलेहिं पारणयं । चउभेयं तेण इमा एक्केक्का होइ चउभेया ।।१०६३०।। इन्हि आयंबिलवद्धमाणनामस्स तवविसेसस्स । भन्नइ सरूवमेत्थ य पढमं आयंबिलं काउं ॥१०६३१॥ कीरइ तवं चउत्थं तत्तो आयंबिलाई दोन्नेव । तयणु पुणो वि चउत्थं तत्तो आयंबिलतियं तु ॥१०६३२।। इय एक्कक्क चउत्तरिया एकुत्तराए वुड्ढीए । कीरंति अंबिला ताव जाव अंते सयं एक्कं ।।१०६३३। काऊणं अंबिलाणं कुणइ चउत्थं तवं तओ एवं । एस समप्पइ सव्वो सयं चउत्थाण इह होइ ॥१०६३४।। पन्नाससमहियाइं तह आयंबिलसयाई पन्नासं । सव्वेगत्ते वासा चउदस दिणवीसमासतियं ॥१०६३५॥ इन्हि तु कहिस्सामि गुणरयणसंवच्छरं तवोकम्म । कायव्वमणिक्खित्तं चउत्थतवमिह पढममासे ।।१०६३६।। दोच्चे मासे छठें तह तच्चे अट्ठमं चउत्थम्मि । मासे दसम कीरइ पंचममासे दुवालसमं ।।१०६३७।। इय उत्तरुत्तरम्मी मासे एक्केक्क दियह वुड्ढीए। कायव्वमणिक्खित्तं तवकम्मं जाव सोलसमे ।।१०६३८।। मासे चउतीसइमं कायव्वं इय समप्पए एयं । अन्नं पि भिक्खुपडिमा पभिइ तवं कुणइ बहुभेयं ।।१०६३९।। एवंविह उग्गतवोविहाणनिरयस्स विन्हवरमणिणो । लद्धीओ जाओ जायाओ ताओ काओ वि वोच्छामि।।४।। आमोसहि विप्पोसहि खेलोसहि जल्लओसही चेव । संभिन्नसोयलद्धी सब्बोसहिलद्धि तह चेव ॥१०६४१।। चारणलद्धी आसीविसलद्धि विउव्विलद्धिणो चेव । अक्खीणमहाणसिया पमुहाओ अणेगलद्धीओ।।१०६४२।। तत्थामोसहीलद्धी जो होइ जई सरोगविहुरंगं । अप्पाणं च परं वा जं किचि वि रोगहरणस्स ।।१५६४३।। अभिपाएणं फासइ तं तक्खणमेव कुणइ नीरोगं । सा होइ एगदेसे देहस्स उ सव्वदेहे वा ॥१०६४४॥ विप्पु भणिज्जइ विट्ठा ओसहिसामत्थजुत्तयाए इमा । विप्पोसहि त्ति भन्नइ तीए लद्धीए जो जुत्तो॥१०६४५।। तविट्ठाए कस्स वि लिपिज्जइ जस्स रोगिणो देहं । अप्पस्स परस्स वसो विहोइ सव्वामयविमुक्को ॥१०६४६।। खेलं भन्नइ निट्ठीवणं ति जल्लं मलो सरीरस्स । खेलोसही वि जल्लोसही वि पुव्वं व नायब्बो ।।१०६४७।। संभिन्नसोयलद्धी एगयरेण वि सरीरदेसेण । उवलहइ इंदियत्थे सव्वे वि परिप्फुडे चेव ।।१०६४८।। सव्वोसहीओ भन्नइ आमोसहिमाइयाओ सव्वाओ। जस्सुप्पन्नाओ ओसहीओ एगस्स जीवस्स ॥१०६४९।। अहवा सव्वसरीरेण तस्स सव्वेहि वा अवयवेहि । खेलोसहिमाईहिं जो ओसहिसत्तिसंजत्तो ।।१०६५०।। अहवा बहुरूवाण वि वाहीणं होइ जो समग्गाण । निग्गहणम्मि समत्थो सो वि हु सव्वोसही नाम ।।१०६५१।। चारणलद्धी दुविहा जंघाए होइ तह य विज्जाए। जंघाचारणलद्धी लूयापुडगस्स तंतु पि ॥१०६५२।। नीसाए काऊणं उड्ढं उप्पयइ गयणमग्गम्मि । विज्जाचारणलद्धी विज्जा सामत्थओ वयइ ॥१०६५३।। आसीविसलद्धी पुण सो भन्नइ जो पओसमावन्नो । देहविणिवायकरणे होइ समत्थो परजणस्स ।।१०६५४।। वेउब्वियलद्धी पुण नाणाविहरूवकरणसत्तिजुओ। लहुगुरुपयणुमहल्लं दिस्समदिस्सं कुणइ रूवं ।।१०६५५।। अक्खीणमहाणसिया एगस्स वि अप्पणो पमाणम्मि । आणीओ आहारो दिज्जतो सयसहस्साण ॥१०६५६।। अन्नेसि तो निठुइ जाव न भुत्तो सयं तमाहारं । सो लद्धिमंतसाहू आणीओ जेण आहारो॥१०६४७।। एवं विविहुग्गतवोकम्मसमुप्पन्नविविहलद्धी सो। खवइ पुराणं कम्मं अंगामंदिरनगम्मि ठिओ ॥१०६५८।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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