Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 369
________________ सिरिमुनिसुव्वयजिननिव्वाणं केवलनाणुप्पत्तीप्पभिई जे केवि भगवया मणुया । पडिबोहिऊण धम्मे ठविया तेसि इमा संखा ॥१०८१४।। अट्ठारसउ गणहरा तीससहस्साई पवरसाहूणं । पन्नाससहस्सा साहुणीण नेया अणूणाओ ।।१०८१५।। एगो सावयलक्खो सहिओ बावत्तरी सहस्सेहिं । चउपन्नसहस्स जुयं लक्खतियं सावियाणं तु ॥१०८१६।। साहूणं मज्झाओ विसेसवंताण भन्नए संखा। चउदसपुव्वधराणं पंचेव सयाई नेयाई ।।१०८१७।। वेउव्वियलद्धीणं दोन्निसहस्साइं वायलद्धीणं । बारससया सयाइं अट्ठारसओहिनाणीणं ॥१०८१८॥ मणपज्जवनाणीणं पन्नरससयाइं होति नेयाइं। केवलनाणीणं पुण नेया अट्ठारसेव सया ॥१०८१९।। अह मुणिसुब्बयसामी गंतु सम्मेयसेलसिहरम्मि । जावज्जीवं पि तओ कयसव्वाहारपरिहारो ।।१०८२०।। मासं पाओवगओ सिलायले फासुए ठिओ विउले। साहुसहस्सेण समं किन्हाए जेट्ठनवमीए ।।१०८२१।। नक्खत्तेणं सवणत्तेणं सहगए जोगममयकिरणम्मि । पुवाए रयणीए निव्वाणमणुत्तरं पत्तो ।।१०८२२।। एत्तोय वज्जपाणिस्स आसणं चलइ सो परंजए ओहिं । कयभत्तपच्चक्खाणं पासइ मुणिसुव्वयं सामि।१०८२३। तो उ8 उं सीहासणाओ सत्तट्ठ सम्मुहपयाइं । गंतुं महिनिहियसिरो पणमइ जीयं च सुमरेइ ।।१०८२४।। कारइ देवाऽहवणं इच्चाइ जहेव जम्मसमयम्मि । जा देवदेविसहिओ आगंतुं भगवओ पासे ॥१०८१५।। विमणो वि गयाणंदो अंसुजलप्फुन्ननयणतामरसो। तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणी कुणइ तित्थयरं ।।१०८२६।। तत्तो नच्चासन्ने न याइ दूरम्मि पज्जुवासेइ । इय सव्वे वि सुरिंदा नेया जा अच्चयाहिवई ।।१०८२७।। एवं भवणवईण वि इंदा जोइसियवंतराणं च । नेया जाव चउन्विहदेवाण निवासठाणाइं ।।१०८२८॥ जाव य सम्मेयनगो ताव य देवेहिं देविनिवहेहिं । सोयभरपूरिएहि अविरहियं संचरंतेहिं ॥१०८२९॥ इय इंदाइसुरेहिं तहा समग्गेण समणसंघेण । सेविज्जमाणचरणारविंदजुयलो जिणो सिद्धो ॥१०८३०।। निव्वाणगए मणिसुव्वयम्मि तेलोक्कभवणदीवम्मि । सक्को वेमाणियभवणवंतरे जोइससुरे य ॥१०८३१।। एवं आइसइ जहा भो ! खिप्पामेव नंदणवणाओ। गोसीससरसचंदणकट्ठाइं एत्थ आणेउं ॥१०८३२।। चियगाओ तिन्नि रएह तत्थ एगा कए जिणिदस्स । पुवदिसाए वट्टा दुइया उण दाहिणदिसाए ॥१०८३३।। तं सा हरिवंसकुलुब्भवाण साहूण सेसयाण पुणो । अणगाराण निमित्तं चउरंसा अह पडिच्छित्ता॥१०८३४।। ते वि तहेव करित्ता सव्वं चिय तं कहेंति सक्कस्स । सो आभिओगियसुरे सद्दावेउं इमं वयइ ।।१०८३५।। भो तुब्भे खिप्पं चिय खीरसमद्दाओ सलिलमाणेह । ते तं आणेति तहा तो सक्को उट्ठिऊण सयं ।।१०८३६।। तित्थयरस्स सरीरं पक्खालइ खीरवारिणा सव्वे । सरसेण पवरगोसीसचंदणेणं च लिपेइ ॥१०८३७।। तयणु नियंसावेइ हंसलक्खणं पवरसाडगं एगं । तत्तो सव्वंगमलंकारेहिं विभुसियं कुणइ ।।१०८३८।। सेसाण णागराणं सेसा वेमाणियाइया देवा । धोवंति सरीराइं खीरसमद्दस्स सलिलेण ॥१०८३९।। गोसीसपवरचंदण रसेण तयणंतरं वि लिंपंति । तयणु नियंसावेंति य जयलाई देवदूसाणं ।।१०८४०।। सव्वालंकारेहि विहूसियाई कुणंति तत्तो य । सक्को ते बहवे वेमाणियभवणालयाईए ।।१०८४१॥ देवे आइसइ जहा भो देवाणुप्पिया दुयं तुब्भे । ईहामियउसभतुरंगमगररुरुकुंजराईणं ॥१०८४२।। नाणाविहरुवगभत्तिसोहियाओ विचित्तसिबियाओ। तिन्नि विउव्वह तासि एगा मुणिसुव्वयपहुस्स ।।१०८४३।। दुइया हरिवंसकुलब्भवाण तइया य सेस साहणं । ते वि तहेव करित्ता सक्कस्स पुरो निवेयंति ।।१०८४४।। अह सो सक्को विमणो विगयाणंदो गलंतजलनयणो। पहुणो विणट्ठजम्मणजरमरणभयस्स उक्खिविउं ।।४५॥ देहं सिबियाए आरुहेइ तं जाव ठवेइ चियगाए । तत्तो ते बहवे भवणवासिवेमाणियाईया ।।१०८४६।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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