Book Title: Munisuvratasvamicarita
Author(s): Chandrasuri, Rupendrakumar Pagariya, Yajneshwar S Shastri, R S Betai
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 347
________________ ३१४ खंदगसूरिकहा आराहणा भविस्सइ जइ तत्थगयाण कि न मे लद्धं ? । इय भणिऊणं तो कुंभकारकडपट्टणाभिमुहा ।।१०११५।। चलिओ खंदगसूरी नियपरिवारेण सह समग्गेण । भयवं पि भविवग्गं पडिबोहइ तत्थ पइदियहं ।। १०११६।। अन्नम्मि वासरे अह पुरंदरजसा समं परियणेण । नियनयराओ पत्ता नहमग्गेणं जिणसमीवे ।।१०११७।। सा दिक्खिया भगवया तो गणहरमल्लिणा जिणो पुट्ठो । कह भूमिगोयरी विह पुरंदरजसा इमा एत्थ ।१०११८॥ नहमग्गेणायाया अह भयवं तस्स साहइ सरुवं । पुरओ सविम्हयाए सदेवमणुयासुरसहाए ।।१०११९।। सावत्थीए पुरीए जियसत्तू नाम अत्थि नरनाहो । सो परमसम्मदिट्ठी जिणधम्मवियारअइकुसलो ॥१०१२०॥ तस्सऽन्नया तहाविहविबहजणेहि समं कुणंतस्स । जिणधम्मस्स वियारं समागओ वालगो नाम ।।१० १२१।। डंडइणा नरवइणा पट्टविओ कुंभकारकडपहणा । पडिहारेणेस तओ कहिओ जियसत्तनरवइणो ।।१०१२२।। तेण वि रन्ना जामाउयस्स पूरिसोत्ति गोरवस्सूचिओ। भणिऊण दारवालाउ झत्ति मोयाविओ एसो।।१०१२३॥ सो कउचियपडिवत्ती रन्ना संभासिओ खणं एक्कं । तेण वि ससामिसंदिट्ठमग्गओ तस्स परिकहियं ।। १०१२४।। जियसत्तुणा वि रन्ना पडिवयणं तस्स तदुचियं दिन्नं । पुणपत्थुओ वियारो धम्मस्स निवेण पारद्धो ॥१०१२५।। सो वालगो पुण महामिच्छदिट्ठी जिणिदधम्मस्स । नाहियवाइत्तेणं पडिसेहं काउमारतो ।।१०१२६।। रन्ना उवेक्खिओ सो न कि पि पच्चत्तरं कयमिमस्स । गोरविओ जामाउयपुरिसो एसो त्ति चितेउं ।।१० १२७।। एमेव विसज्जेउं पारद्धो कारिऊण सम्माणं । एत्थंतरम्मि खंदगकुमरो निवसन्निहिनिसन्नो ॥१०१२८।। अच्चंतसम्मदिट्ठी जीवाइपयत्थलद्धपरमत्थो । भावियचित्तो अच्चंतमरहओ आगमगिराहिं ।। १० १२९।। जिणधम्मपक्खवायं वहमाणो तस्स निंदमसहंतो । एक्कक्केण वालगवयणाई अणेगजुत्तीहि ।।१०१३०।। हेऊहिं य दिट्ठताणुगएहि दूसए तहा कह वि । जह सो वालगमरुओ पणट्ठपच्चुत्तरो जाओ ।।१० १३१।। एत्यंतरम्मि पासट्ठिएहिं उग्घुट्ठमेरिसं झत्ति । बहुवाराओ जह जयइ सासणं जिणवरस्स जए ।।१०१३२।। अह सो वालगमरुओ विलक्खहियओ विवन्नमुहवन्नो । पगलंतसेयसलिलो विलज्जिओ निग्गओ तत्तो।१०१३३। गुरुरोसमुव्वहतो रायसुए खंदगम्मि कुमरम्मि । पत्तो नियपहपासे साहइ जियसत्तुपडिवयणं ।।१०१३४।। खंदगकुमरेण तओ पडिवन्ना मज्झ अंतिए दिक्खा । सो उ मए सूरिपए संपइ संठाविओ संतो ।।१०१३५।। एत्तो ठाणाहितो वच्चंतो कुंभकारकडनयरे । मुद्धोवालगमरुगस्स पुव्वरोसं वहंतस्स ।।१०१३६।। तो तेण साहुसमुचियभूमिपएसेसु नयरबाहिम्मि । सव्वत्तो विणिहित्ता आउहनिवहा अदीसंता ।।१०१३७।। खंदगसूरी वि तओ संपत्तो तत्थ बाहिरुज्जाणे । नाऊण डंडइनिवो सकलत्तो वंदणनिमित्तं ॥१०१३८।। अइगरुयविभूईए विणिग्गओ वंदिऊण विणएण। तं सूरि सपरियणं उवविट्ठो उचियदेसम्मि ।।१०१३९।। खंदगमुणीसरेण वि पारद्धा धम्मदेसणा काउं । नट्ठविवेया जीवा सुहाभिकखाए तं कि पि ।।१०१४०।। कम्मं समायरंती इंदियवसवत्तिणो विसयगिद्धा । अनिरुद्धकसायगणा अगणियपरपाणपीडा य ।।१०१४१।। जेणुवचियघणकम्मा नरगाइसु वेयणास मुग्घायं । विसहंता सव्वत्तो कालमणंतं भमंति भवे ।।१० १४२।। तो लद्धविवेएहिं पुरिसेहि गरुसत्तवन्तेहिं । सव्वेहि पयारेहि धम्मो च्चिय होइ कायव्वो ॥१०१४३।। परमत्थओ उ सो उण धम्मो परपाणपीडपरिहरणं । इच्चाइ सूरिकहियं धम्म सोऊण सव्वो वि ।।१० १४४।। रायाईओ लोओ रंजियचित्तो अईव संजाओ। तो पणमिऊण सूरि समुट्ठिओ नियगिहम्मि गओ ।।१०१४५।। राया. वि पसंसंतो सूरिगुणे आगओ नियावासे । तो वालगमरुगेणं एगंतं मग्गिऊण निवो ।१०१४६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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